________________
* प्रथम सर्ग *
७३
सेवन करते हैं। इनके उपर नौ गवेयक और पांच अनुत्तर विमानके देवता हैं, जो अतिशय प्रौढ़ विचारवाले और विषयसे निवृत्त रहनेवाले होते हैं, इसलिये पहलेवालोंसे ये अनन्त गुण सुखी होते हैं ।
-
अब वह देव उस देवी के साथ कभी नन्दोश्वर द्वीपमें जाकर शाश्त्रत जिन - प्रतिमाका अर्चन कर नाच-गान करते हुए, कभी महामुनियोंकी उपासना करते हुए, कभी नन्दन - वनकी दीर्घिकाओंमें जल-क्रीड़ा करते हुए और कभी नित्य गाने बजानेका मज़ा लेते हुए इच्छापूर्वक आनन्द-उपभोग कर रहा था । इस तरह विषय सुख भोगते हुए उसने बहुतसा समय विता दिया । इधर बहुत समय व्यतीत होनेके बाद वह कुर्कट सर्प भी मर गया और धूम्रप्रभा नामकी पांचवी नरक पृथ्वीमें सत्तर सागरोपमकी आयुवाला नारकी हो गया । उस नरकमें वह नाना प्रकारके कष्ट भोग करने लगा । सिद्धान्तमें कहा हैं कि नरक में नारकी जीव बड़े तीखे और महाभयङ्कर दुःख सहन करते हैं; फिर करोड़ वर्षोंमें वे कितना दुःख उठाते होंगे । इसकी कौन वर्णन कर सकता है ? अग्निदाह, शाल्मालीके वृक्ष पर से गिरना, आसेवन - अग्नीमें भ्रमण करना वैतरणी में बहना, और इसीतरह सैंकड़ों प्रकारके कष्ट ये नारकी जीव उठाया करते हैं । यह सब पूर्व भवमें किये हुए पाप और अधर्मका ही फल है । कमठका जीव नरकमें पहुंचकर घड़ीभर भी चैन नहीं पाने लगा ।