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• पार्श्वनाथ-चरित्र * इस प्रकार हरिश्चन्द्र आचार्यकी देशना श्रवणकर बहुतेरे लोगोंको प्रतिबोध हुआ और सब अपने अपने भावके अनुसार नियम और अभिग्रह ले, वन्दना कर, अपने-अपने स्थानको चले गये । उस समय प्रकृतिसे हो लघु-कर्मी मरुभूति विषयसे विरक्त होकर धर्म में तत्पर हो गया। दक्षता, दाक्षिण्य, सौजन्य, सत्य, शौच और दया आदि गुणोंसे वह कनिष्ठ होकर भी ज्येष्ठ हो गया और ज्येष्ठ कमठ मिथ्यात्वकी कठिनताके कारण मगसलिया पत्थरके समान हो रहा। एक ही कुलमें जन्म लेनेवाले लड़के भी सब एक तरहके नहीं होते। कहा भी है कि कितनी ही तुम्बियां योगियोंके हाथमें जाकर पवित्र हो जाती हैं, कितनी ही शुद्ध बाँसके साथ लटकती हुई सरस और मधुर गानका आनन्द देती हैं, कितनी ही मजबूत रस्सीमें बंधकर जलमें डूबते हुएका सहारा होती हैं, और कितनी ही हृदय जलाकर रक्तपान करनेके काममें आती हैं । उसो तरह यह भी कहा हुआ है कि गुणसे उज्ज्वल ऐसे दीपक और सरसों छोटे होनेपर भी प्रशंसा पाते हैं और प्रदीपन ( अग्नि ) तथा विभीतक (बेहरा ) बड़े होनेपर भी श्रेष्ठ नहीं माने जाते। __भावयतिके समान मरुभूतिको स्वप्नमें भी काम-विकार नहीं होता था और उसकी पत्नी वसुन्धरा कामसे बड़ी व्याकुल रहतो थी, कमठको उसपर बहुत बुरी नीयत थी, इसलिये उसने छेड़छाड़ करके उसे अपनी मुट्ठीमें कर लिया। दोनों कामान्ध होकर मनमानी मौज उड़ाने और काम-क्रीड़ा करने लगे । कमठकी स्त्री वरुणाने इन दोनोंका यह हाल देख मरुभूतिसे कह दिया । सब