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८ क्रियारुचि आत्म-धेसके साथ तप वगैरः बाह्य क्रियाओपर
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Ran, रुचि रखनेवाला जीव क्रियारुचि कहलाता है। ___६ संक्षेप-रुचि-जो जीव थोड़ेसे अर्थको सुननेपर भी बहुत अर्थको जान सकता है और इससे कुमति-कदाग्रहमें नहीं फंसता, वह संक्षेपरुचि होता है ।
१० धर्मरुचि-जो पांचों अस्तिकायके स्वरूपको श्रुतज्ञानसे जानकर चारको छोड़ दे और एक स्वभाव अन्तरङ्ग सत्ताके ऊपर सहहणा करे वह धर्म-रूचि कहलाता है।
इस प्रकार गुरुके उपदेश श्रवणकर, ललिताङ्ग राजाका मन सम्यक्त्वमें निश्चल हो गया। गुरुके वचन-रूपी अमृतसे सींचे जाकर वे सात क्षेत्रोंमें धन व्यय करने लगे और विशेष रूपसे संघभक्ति करने लगे ; क्योंकि संघभक्ति करनेसे बहुत लाभ होते हैं। कहा भी है, जो कल्याण-रुचि प्राणी गुण-राशिके क्रीड़ा-सदनके समान संघकी सेवा करता है, उसके पास लक्ष्मी आपसे आप आती है, कीर्ति उसका आलिङ्गन करती है, प्रीति उसीको भजती है, मति उससे मिलनेके लिये उतावली हो जाती है, स्वर्ग-लक्ष्मी उसीसे मिलना चाहती है और मुक्ति उसे बारम्बार देखती है। लोकमें राजा श्रेष्ठ होता है,उससे चकवर्ती श्रेष्ठ होता है,उससे इन्द्र श्रेष्ठ होता है और सबसे तीनों लोकके नायक जिनेश्वर देव श्रेष्ठ माने जाते हैं। वे शानकी मणिनिधिके समान जिनेश्वर भी श्री संघको प्रतिदिन नमस्कार करते हैं। इसलिये जो वैरस्वामीकी तरह श्रोसंघकी उन्नति करता है, उसकी संसारमें बड़ी प्रशंसा