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* पार्श्वनाथ-चरित्र हुई, तो मैं आगमें जलकर मर जाऊँगा, इसलिये व्यर्थ क्यों प्राण गवाऊँ ? जीते रहनेसे मनुष्यको सैकडों प्रकारके लाभ होते हैं। ___ यही सोचकर वह सीकेसे नीच उतर पड़ा और किंकतय. विमूढ़ होकर सोचने लगा,-"अब ऐसी दुर्लभ सामग्री कहाँ मिलेगी ? फिर मैं क्या करू ?” यही सोचकर वह पुनः सीकेपर जा बैठा ; परन्तु फिर भी वही शंका होने लगी। इसी तरह वह चढ़ने उतरने लगा।
इसी समय कोई चोर राजाके महलसे गहनोंकी पेटी चुराये लिये उसी वनमें आ पहुँचा। वहाँ इधर उधर निगाह करते एक जगह आगका उजेला देख उसी ओर चला। चोरने स्कन्दिलके पास पहुँचकर उसका हालवाल पूछा। उसने सच-सच सारा हाल सुना दिया। अब चोर विचार करने लगा,-"गन्धार जिनधर्ममें बड़ा पक्का श्रावक है, इसलिये उसका कहा कभी झूठ नहीं हो सकता।” यही विचार कर उसने कहा,-"तुम यह ज्वाहिरातकी पेटी ले लो और मुझे वह मन्त्र बतला दो, तो मैं उसका साधन कर तुम्हें और भी खुश करूँगा।" स्कन्दिलने तमाशा देखनेके लिये उसे ज्योंका-त्यों वह मन्त्र बतला दिया। चोरने सीकेपर बैठकर एकाप्रमनसे १०८ बार उस मन्त्रका जाप किया और बड़े साहसके साथ उस सीकेकी चारों रस्सियोंको एक ही साथ काट डाला। इतने में उस विद्याकी अधिष्ठात्री देवो सन्तुष्ट होकर उसके लिये एक विमान ले आयी। चोर उसी विमान पर बैठ कर उसी समय आकाशमार्गमें उड़ चला।