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अधिकरण
आगम विषय कोश-२
है।
औदारिक, वैक्रिय और आहारक में संघात, परिशाट २. लोकोत्तर निक्षेपणा-पात्र-उपकरण रखते समय प्रत्युपेक्षाऔर उभय (संघात-परिशाट)-तीनों होते हैं। उभय की प्रमार्जन संबंधी दोष लगाना। इसके चार विकल्प हैंस्थिति अनियत है। संघात और परिशाट एक सामयिक है। प्रतिलेखना नहीं करता, प्रमार्जन नहीं करता। संघात प्रथम क्षण में और परिशाट अंतिम क्षण में होता है। प्रतिलेखन नहीं करता, प्रमार्जन करता है। ० घतपप दष्टांत-पप को घी में डाला जाता है। वह प्रथम प्रतिलेखन करता है, प्रमार्जन नहीं करता। समय में एकांत रूप से घी को ग्रहण करता है, दूसरे, तीसरे दुष्प्रतिलेखन-दुष्प्रमार्जन करता है। आदि क्षणों में ग्रहण और मोचन दोनों करता है।
अविधि से निक्षेपणा के कारण ये चारों विकल्प अधिकरण ० लोहकार दृष्टांत-लोहकार तप्त लोहे को जल में डालता हैं। है। लोह प्रथम समय में एकांत जलग्रहण करता है. अगले सप्रतिलेखन और सुप्रमार्जन अधिकरण नहीं हैं! क्षणों में ग्रहण और मोचन दोनों क्रियाएं होती हैं।
(आहार-पानी के पात्रों को खुला रखना भी निक्षेपणा इसी प्रकार औदारिक आदि प्रथम तीन शरीरों में प्रथम अधिकरण है।) समय में संघात और अगले क्षणों में संघात-परिशाट होता ० संयोजना अधिकरण-इसके दो प्रकार हैं
१ लौकिक संयोजना-विष, गर (जिसे खाने से सहसा मृत्यु तैजस और कार्मण शरीर में अनादि होने के कारण नहीं होती) आदि को निष्पन्न करने हेतु द्रव्यों की संयोजना सब क्षणों में संघातपरिशाट होता है।
करना। अनेक रोगोत्पादक द्रव्यों को संयुक्त करना। चरमशरीरी के अंतिम क्षण में पांचों शरीरों का सर्वपरिशाट २. लोकोत्तर संयोजना-आहार, उपधि आदि की संयोजना। (पूर्ण परित्याग) होता है।
वसति के भीतर या बाहर क्षीर में खांड, मण्डक में गुड़ आदि ____ अथवा औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर के सिर, मिलाया, यह आहार संयोजना है। उर, उदर, पृष्ठ, बाहुद्वय, ऊरुद्वय-ये आठ अंग मूलकरण निष्कारण या अविधि से वस्त्र आदि सीना उपधि संयोजना निर्वर्तन हैं, शेष अंगोपांग उत्तरकरण निर्वर्तन हैं। २. उत्तरगुण निर्वर्तना-प्रथम तीन शरीरों में उत्तरकरण है- निसर्जना अधिकरण-इसके दो प्रकार हैंकर्णवेधकरण, स्कंधकरण और घृत आदि से वर्णकरण। १. लौकिक निसर्जना-बाण, शक्ति, गोफण, पाषाण, चक्र * शरीर-संघातपरिशाटकरण, द्रव्यकरण द्र श्रीआको १ शरीर आदि फेंकना। ५.निक्षेपणा-संयोजना-निसर्जना अधिकरण
२. लोकोत्तर निसर्जना-सहसा. प्रमाद से या विस्मति से गल-कड पासमादी, उ लोइया उत्तरा चउविकप्पा। निसर्जन करना, भोजन में गिरे हुए कंकर आदि को निकालकर पडिलेहणा पमज्जण, अधिकरणंअविधि-णिविखवणा॥
फेंकना। विसगरमादी लोए, उत्तरसंयोग मत्तउवहिम्मि।
० संयोजना अधिकरण : कर्मबंध में नानात्व अंतो बद्रि आद्वारे विधि अविधि मिळणावी संजोययते कूडं, हलं पडं ओसहे य अण्णोण्णे। कंडादिलोअ णिसिरण, उत्तर सहसा पमायऽणाभोगे।" भोयणविहिं च अण्णे, तत्थ वि णाणत्तगं बहहा॥ (निभा १८०५-१८०७)
यः कूटं संयोजयति तस्य संक्लिष्टपरिणामतया ० निक्षेपणा अधिकरण-इसके दो प्रकार हैं
तीव्रतरः कर्मबन्धः, तदपेक्षया हलं संयोजयतः स्वल्पतरः, १. लौकिक निक्षेपणा-मत्स्य को पकड़ने के लिए गल पटं संयोजयतः स्वल्पतम इत्यादि। (बृभा ३९४६ वृ) (लोहकण्टक), मृग आदि को फंसाने के लिए कूट, लावक कोई लुब्धक मृग आदि को फंसाने के लिए कूटयंत्र को आदि को पकड़ने के लिए जाल आदि का निक्षेपण करना। रज्जु आदि से संयोजित करता है । कृषक क्षेत्रकर्षण के लिए
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