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अजीव पदार्थ : टिप्पणी १०
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द्रव्य आकाश बिना नहीं रह सकते परन्तु इनसे रहित आकाश हो सकता है। इसीलिए पंचास्तिकाय ग्रन्थ में कहा है-“जीव, पुद्गलसमूह, धर्म और अधर्म ये द्रव्य लोक से अनन्य हैं अर्थात् लोक में हैं । लोक से बाहर नहीं है। आकाश लोक से बाहर भी है। यह अनन्त है इसे अलोक कहते हैं। आकाश नित्य पदार्थ है, क्रियाहीन द्रव्य है और वर्णादि रूपी गुणों से रहित अर्थात् अमूर्त है।"
अब यहाँ प्रश्न उठ सकता है आकाश जैसे द्रव्यों का भाजन माना जाता है वैस ही उसे गति और स्थिति का कारण क्यों नहीं माना जाय ? ऊपर दिखाया जा चुका है कि आकाश लोक और अलोक दोनों में है। जैन मान्यता के अनुसार सिद्ध भगवान का स्थान ऊर्ध्व लोकान्त है। इसका कारण यह है कि धर्म और अधर्म द्रव्य उसके बाद नहीं हैं। अब यदि धर्म और अधर्म का अस्तित्व स्वीकार किया जाय और आकाश ही को गमन
और स्थिति का कारण मान लिया जाय तब तो सिद्ध भगवान का अलोक में भी गमन होगा जो वीतराग देव के वचनों के विपरीत होगा। इसलिये गमन और स्थान का कारण आकाश नहीं हो सकता। यदि गमन का हेतु आकाश होता अथवा स्थान का हेतु आकाश होता तो अलोक की हानि होती है और लोक के अन्त की वृद्धि भी होती। [ इसलिये धर्म और अधर्म द्रव्य गमन और स्थिति के कारण हैं परन्तु आकश नहीं है। ] धर्म, अधर्म और आकाश एक-द्रव्य हैं; पर ये क्रमशः अनन्त पदार्थों को गमन, स्थिति और अवकाश देते हैं। इन अनन्त वस्तुओं की उपेक्षा से इनकी पर्यायें अनन्त कही गयीं हैं।
१०. धर्मास्तिकाय के स्कंध, देश, प्रदेश भेद (गा० १५-१६)
धर्मास्तिकाय को एक नियत, अक्षत, अव्यय और अवस्थित द्रव्य बताया गया है ऐसी हालत में उसके विभाग कैसे सकते हैं-यह एक प्रश्न है ? इसका उत्तर इस प्रकार है : वास्तव में धर्मास्तिकाय अखण्ड द्रव्य है और उसके जुदे-जुदे अंश-विभाग-टुकड़े नहीं किये जा सकते पर अखण्ड द्रव्य में भी अंशों की कल्पना तो हो ही सकती है। एक स्थूल उदाहरण से. ही इसे समझा जा सकता है। धूप और छाया को अगर हम चाकू से काटना चाहें और उनके अलग-अलग अंश या टुकड़े करना चाहें तो यह असम्भव होगा फिर भी छोटे-बड़े किसी भी माप से हम उसके अंशों की कल्पना कर सकते हैं। इसी तरह धर्मास्तिकाय में भी अंशों की कल्पना कर उसके विभाग बताये गये हैं।
'प्रदेश का अर्थ वस्तु का उससे संलग्न सूक्ष्मतम अंश । समूचा अन्यून धर्मास्तिकाय स्कंध है। संलग्न सूक्ष्मतम अंश की अलग कल्पना से अगर एक सूक्ष्मतम अंश की अलग