________________
आस्त्रव पदार्थ (ढाल : १)
३५१
१०. आस्रव-रूपी उन्मुक्त द्वार को अवरुद्ध करने–बंद करनेवाले
संवर द्वार हैं। आस्रव-द्वार को रूंधनेवाले और नए कर्मों के प्रवेश को रोकनेवाले उत्तम गुण जीव के ही हैं।
आस्रव का प्रति
पक्षी संवर
पाँच पाँच आस्रव
संवर-द्वार
११. इसी तरह चौथे अङ्ग में पाँच आस्रव और पाँच संवर-द्वार
कहे हैं । आस्रव कर्मों का कर्ता, उपाय है। कर्म आस्रव के द्वारा ही आकर लगते हैं।
१२. उत्तराध्ययन सूत्र के २६ वें अध्ययन में प्रतिक्रमण करने
का फल व्रतों के छिद्र का रूंधन और आस्रव-द्वार का अवरोध होना बतलाया है।
आस्रव-द्वार का वर्णन कहाँ-कहाँ
उत्त०२६.११
उत्त०२६.१३
१३. उसी सूत्र के उसी अध्ययन में प्रत्याख्यान का फल आस्रव
का रुकना-नए कर्मों के प्रवेश का बंद होना बतलाया है।
उत्त०३०.५-६
१४. उसी सूत्र के ३० वें अध्ययन में कहा है कि जिस तरह
नाले को रोक देने से पानी का आना रुक जाता है उसी तरह आस्रव के रोक देने से नए कर्म नहीं आते"।
उत्त० १६.४४
१५. उसी सूत्र के १६ वें अध्ययन में अशुभ द्वारों को रोकने का
उपदेश है। कर्म आने के मार्ग को रोक देने से पाप नहीं लगता।
दशवैकालिक
१६. दशवैकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन में कहा है कि
आस्रव-द्वार को बन्द कर देने से पाप कर्म जरा भी नहीं बंधते | तीसरे अध्ययन में भी आस्रव का उल्लेख है।
४.६
३.११
दशवैकालिक
१७. जो पाँचों आस्रव-द्वारों का निरोध करता है वह भिक्षु महा
अनगार है। यह उल्लेख की दशवैकालिक सूत्र में है। इसका निश्चय सूत्र देखकर करो |
१०.५