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नव पदार्थ
प्रश्न हो सकता है इन सबका कारण क्या है ?
आगम के अनुसार बंधे हुए कर्मों से निम्न स्थितियाँ घट सकती हैं : (१) अपवर्तना, (२) उद्वर्तना, (३) उदीरणा और (४) संक्रमण । इनका अर्थ संक्षेप में इस प्रकार है :
(१) अपवर्तना : स्थिति-घात और रस-घात । कर्म-स्थिति का घटना और रस का मन्द होना।
(२) उद्वर्तना : स्थिति-वृद्धि और रस-वृद्धि । कर्म की स्थिति का दीर्घ होना और रस का तीव्र होना।
(३) उदीरणा : लम्बे समय के बाद तीव्र भाव से उदय में आनेवाले कर्मों का तत्काल और मन्द भाव से उदय में आना।
(४) संक्रमण : कर्मों की उत्तर प्रकृतियों का परस्पर संक्रमण । “जिस अध्यवसाय से जीव कर्म-प्रकृति का बन्ध करता है, उसकी तीव्रता के कारण वह पूर्व बद्ध सजातीय प्रकृति के दलिकों को बध्यमान प्रकृति के दलिकों के साथ संक्रान्त कर देता है, परिणत या परिवर्तित कर देता है-यह संक्रमण है। संक्रमण के चार प्रकार हैं-(१) प्रकृति संक्रम, (२) स्थिति-संक्रम, (३) अनुभाव-संक्रम और (४) प्रदेश-संक्रम (ठाणाङ्ग ४.२.२१६) । प्रकृति-संक्रम से पहले बन्धी हुई प्रकृति वर्तमान में बंधनेवाली प्रकृति के रूप में बदल जाती है। इसी प्रकार स्थिति, अनुभाव और प्रदेश का परिवर्तन होता है।"
___ कर्मों की उद्वर्तना आदि स्थितियाँ उत्थान, कर्म, बल, वीर्य तथा पुरुषकार और पराक्रम से होती हैं।
१२. प्रदेशबंध (गा० २३-२६) :
लोक में अनन्त पुद्गल वर्गणाएँ हैं। उनमें औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, भाषा, श्वासोच्छवास, मन और कामर्ण ये आठ वर्गणाएँ मुख्य हैं। इनमें से जीव कार्मणवर्गणा में से अनन्तानन्त प्रदेशों के बने हुए कर्मदलों को ग्रहण करता है। ये कर्मदल बहुत ही सूक्ष्म होते हैं | स्थूल-बादर नहीं होते। इनमें स्निग्ध, रुक्ष, शीत और गर्म ये चार स्पर्श होते हैं। लघु, गुरु, मदु और कर्कश-ये स्पर्श नहीं होते। इस तरह कर्मदल चतुःस्पर्शी होता है। तथा उसमें पाँच वर्ण, दो गंध और पाँच रस रहते हैं। इस तरह प्रत्येक कर्म स्कंध में १६ गुण रहते हैं।
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जैनधर्म और दर्शन पृ० ३०७