Book Title: Nav Padarth
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 801
________________ ७८० नव पदार्थ आस्रव और पापस्थानक-४६४-६५ आस्रव और प्रतिक्रमण-३६२ आस्रव और प्रत्याख्यान-३८८ आस्रव और जीव-प्रदेश-४१७-१६ आस्रव और भले-बुरे परिणाम-३७० आस्रव और भावलेश्या-४०६ आस्रव और संज्ञाएँ-४१० । आस्रव और शुभाशुभ परिणाम-३७० आस्रव : कर्मद्वार-३६६ आस्रव कर्मों का उपारा-३८७ आस्रव कर्मों का कर्ता-३८७ आस्रव कर्मों का हेतु-३८७ । आस्रव के बयालिस भेद-३७२, ३८२-८६ आस्रव के बीस भेद-३७२-३८१ आस्रव को अजीव मानना मिथ्यात्व-४१२ । आस्रव जीव-अजीव दोनों का परिणाम नहीं-४०७-८ आस्रव जीव कैसे-४१२-१३, ३७१ आस्रव जीव-परिणाम-३७०, ४०१ आस्रव जीव-परिणाम है अतः जीव है-४०१ आस्रव जीव या अजीव-३६७-४०० आस्रव-द्वार और प्रश्नव्याकरण सूत्र-३६१ आस्रव-निरोध-३८६ आस्रव पदार्थ-३४५-४८६ आस्रव पाँचवां पदार्थ-३६८-६६ आस्रव रूपी नहीं, अरूपी-४२५-२७ आस्रव विषयक संदर्भ---३६४-६६ आस्रव संख्या-३७२-७३ आस्रवों की परिभाषा--३७३ आशय और योग-२६६-६८ आहारक वर्गणा-२८२, ७२६ आहार संज्ञा-४७४ आहारक शरीर-३५, १०८, १६३ इंगिनीमरण अनशन-६३० इत्वरिक अनशन के १४ भेद-६२६ इन्द्र-६६० इन्द्रिय-५८० इन्द्रि आस्रव-३८२ इन्द्रियप्रतिसंलीनता तप-६५२ इन्द्रिय-परिणाम-५७२ इष्ट शब्द-११२ इहलोक-६१५ ईर्यापथक्रिया आस्रव-३८३ ईर्या समिति-५१५ उक्षिप्तचर्या-६४१ उक्षिप्तनिक्षिप्त चर्या-६४१ उच्चगोत्र कर्म-१६७-६८ उच्चगोत्र कर्म के उपभेद-३४२-४३ उच्चगोत्र कर्म के बंध-हेतु-२२८ उच्छलक्ष्णश्लक्ष्णिका-६२ उज्झितधर्मा एषणा-६४३ उत्कटुकासनिक तप-६४६ उत्तरकुरु-६२ उत्तर प्रकृतियाँ-१६०, ३३१-३५, ७२०-२१. ७२४ उत्थान-४७५-७६ उत्पल-६१ उत्पलाङ्ग ६१

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