Book Title: Nav Padarth
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 812
________________ शब्द-सूची ७६१ पाप कर्म की परिभाषा-२८०-८१ पाप-कर्म स्वयंकृत-२८४-८७ पाप की करनी-२६१-६६ पाप चतुर्पर्शी रूपी पदार्थ-२८२ पाप चौथा पदार्थ-२७४-८० पाप पदार्थ-२५५-३४४ पाप प्रकृतियाँ-३३२-३४, ३३६-३६ पाप स्थानक-२६२-३, ४६४-६५ पापस्थानक और आस्रव-४६४-६५ पापासव-२८४ पापास्रव के हेतु-अशुभकार्य-२८४-८६ पापोत्पन्न दुःख और समभाव-२८७-६१ पारंगत-७४२ पारांचितकार्ह प्रायश्चित्त तप-६५८ पारिग्राहिकी-क्रिया आस्रव-३८५ पारिणामिक भाव-३८-३६, ५७२ पारितापिकी क्रिया आस्रव-३८३ पार्टिगंटन-१२१ पार्श्वनाथ-५४७ पिण्डिम शब्द-११० पिपासा परीषह-५२१ पिहितास्रव के पाप-बंध का अभाव-३८६ पुण्य-२४, १३३-२५४, २७४-८४, ४२१, ४५५, ४६५, ४७१-२, ७०६, ७६४-६७ पुण्य और निर्जरा-२०४-५ पुण्य और मोक्ष-२०७-८ पुण्य और शुभ योग-२०३-५ पुण्य कर्म (चार)-१५५-६ पुण्य कर्म के फल-१६६-७१ पुण्य का भोग-२००-१, २४७-८ पुण्य काम्य क्यों नहीं-१५३, १७६-७ पुण्य का सहज आगमन-४७१-७२ पुण्य की अनन्त पर्यायें-१५७ पुण्य की करनी और जिनाज्ञा-२०५-८ पुण्य की वाञ्छा : काम-भोगों की वाञ्छा २४८ पुण्य की वाञ्छा से पाप-बन्ध-१७३ पुण्य के नौ बोल-२००-१, २३२ पुण्य के नौ बोलों की समझ और अपेक्षा-- २३३-३६ पुण्य केवल सुखोत्पन्न करते हैं-१५६-७ पुण्य के नौ हेतु-२००-१ पुण्य-जनित कामभोग विष-तुल्य-१५१-२ पुण्य तीसरा पदार्थ-१५०-५१ पुण्य निवद्य योग-१५८-६ पुण्य सावध करनी से नहीं-२०५, २०६-३२ पुण्य से काम-भोगों की प्राप्ति-१५१ पुण्य पुद्गल की पर्याय है-१५४ पुण्य-प्रकृति (तीर्थंकर) से भिन्न पुण्य-प्रकृति का बन्ध-२०२-३ पुण्य-बन्ध की प्रक्रिया-२०३-८ पुण्य-बन्ध के हेतु-१७३-७६ पुण्य शुभकर्म-१५४ पुण्योत्पन्न सुख पोद्गलिक और विनाशशील -१५२ पुद्गल-३२-३३, ३४, ७१, ६५-१२७, १५४, २८१, २८२, ३६८, ४०१ पुद्गल (भाव) के उदाहरण-१०६-१४

Loading...

Page Navigation
1 ... 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826