Book Title: Nav Padarth
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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शब्द-सूची
सविचार अनशन - ६३१ सर्वगात्र-प्रतिकर्म-विभूषाविप्रमुक्त-६५१
सर्वघाती - ३०४, ३१२
सर्वदुःखप्रहीण- ७४२
सर्वभाव नियत - ४७५
सर्वविरति चारित्र की उत्पत्ति - ५४१-२
सर्व विरति संवर - ५२८-२६
सर्व सिद्धों के सुख समान हैं-७५४
सशरीरी - ३५
सहज निर्जरा - ५६०, ५६१, ६१०, ६११ सांसारिक सुख और मोक्ष सुखों की तुलना
७४७
साकार उपयोग - ५७६-८०
सागरोपम काल-१२
सातावेदनीय कर्म - १५६, २२०-२१, २२४ सातावेदनीय कर्म के बंध हेतु - २२०-२१,
२२४
सातासातावेदनीय कर्म के बन्ध- हेतु - २२४ सादिसंस्थान नामकर्म - ३३७
साधर्मिक-६६५
साधारणशरीर नामकर्म - ३३८
सामायिक- ५४७
सामायिक चारित्र - ५२३, ५३८, ५३६ सामायिक चारित्र की उत्त्पत्ति - ५३६
सावद्य - ४५, २३६
सावद्य आस्रव - ४६३
सावद्य. कार्य और योगास्रव - ४५, ४२४ सावद्य कार्य का आधार - २३६, ४६६ सावद्य योग- १५८, २५३, ४१६, ५४५
८०१
सिद्ध-- ७२८, ७४२, ७४८, ७५०-५१ ७५२,
७५४ सिद्धजीव का लोकाग्र पर रुकने का कारण- ७४५
सिद्ध-वत्सलता - २१४
सिद्धसेन गणि- ३६७
सिद्धि-स्थान- ७४३, ७४८ सिद्धों के ३१ गुण- ७४६
सिद्धों के गुण- ७४३
सिद्धों के १५ भेद - ७५०-५१ सिद्धों के सुख - ७४८
सिद्धों में प्राप्य आठ विशेषताएँ - ७४६-४७ सुख - १५२, १७१, २४८, २८१, २८३,
२८६-६०, ६८६, ७२४, ७५४ सुखलाल, पंडित - ६८६, ७१८ सुखशय्या-३२९
सुप्त - ४७६
सुप्तजाग्रत-४७६
सुश्रामण्य-२३२
सूक्ष्मत्व-स्थूलत्व - ११४
सूक्ष्म नामकर्म - ३३८
सूक्ष्मसम्पराय चारित्र - ५२३ सूक्ष्मसम्पराय संयत-५३६
सूची - कुशाग्र आस्रव - ३८१, ४५६-६० सूची- कुशाग्र संवर - ५२६ सूर्य सागर, मुनि - ६१२ सेवा - २१७ सेवार्तसंहनन नामकर्म - ३३७ सोपक्रम कर्म - ६७५-७६
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