Book Title: Nav Padarth
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नव पदार्थ
मोहनीय कर्म के उपशम से उत्पन्न भाव-
५८६ मोहनीय कर्म के बन्ध-हेतु-२३०, ३१६-२०,
३२१-३ मौनचर्या-६४२ यथाख्यात चारित्र-५२३, ५४०-४१ यथाख्यात चारित्र की उत्पत्ति-५४१-४२ यथाख्यात संयत-५३६ यमी-६६१ याचना परीषह-५२२ यावात्कथिक (यावज्जीवन) अनशन-६२६ योग-१५८, २०३, २०४, २०५, २५३, २६१,
२६६, ३०१, ४०४, ४१५, ४१८, ४५४, ४५५-५६, ४६०-६३, ४६५-६८, ४७२,
५१७, ६७५, ७११ योग आस्रव-३७६-८०, ३८२, ४२४-५ योग जीव है-४०५, ४१६-२१ योग और संयम-४७२-७३ योग-निरोध और फल-५४५ योग-प्रतिसंलीनता तप-६५३ योगवाहिता–२३२ योग संवर का हेतु है या निर्जरा का ?
६८०-६८८ योगसत्य-४२६ योजन-६२
रस-११३, ४५३ रस नामकर्म-३३५ रसनेन्द्रिय आस्रव-३८१, ४५३-५४ रसनेन्द्रिय-बल प्राण-३० रस परित्याग-६४५-४८ रस बन्ध-७१८-१६ राग-७१० राजचन्द्ध-४२३ रानी धारिणी-६८६ रासायनिक तत्व-१२० राशि-७६४ रूक्ष शब्द-११० रूपी-६८, ४२५ रूपी-अरूपी सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-७६६ रोग परीषह-५२२ रौद्रध्यान-४११, ६६८-६ लक्षण (द्रव्य जीव के)-४२७ लघुत्व कैसे प्राप्त होता है-२६४ लगंडशायी तप-६५० लत्तिका शब्द-१११ लब्धि-५८३, ५८४, ५८५, ५८६ लयन-पुण्य-२०० लाभ अन्तराय कर्म-३२४ लूक्षाहार-६४७ लेवोजियर-११८ लेश्या-४०६, ४१०, ४६६, ४६६ लोक-१३०, १३१ लोक अलोक का विभाजन-१३०-३१ लोकाकाश-७८-८६
योनि-३५
रंगण-३२ रतिमोहनीय कर्म-३१६ रत्नसूरि-६७६
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