Book Title: Nav Padarth
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 787
________________ ७६६ नव पदार्थ ७. निर्जरा जीव है या अजीव ? जीव है। किस न्याय से? कर्म को तोड़ता है, वह जीव है। ८. बन्ध जीव है या अजीव ? अजीव है। किस न्याय से ? शुभ-अशुभ कर्म का बंध अजीव है। ६. मोक्ष जीव है या अजीव ? जीव है। किस न्याय से ? समस्त कर्मों को दूर करनेवाला मोक्ष जीव है। प्रश्नोत्तर-२ १. जीव रूपी है या अरूपी? अरूपी है। किस न्याय से ? पाँच वर्ण आदि नहीं पाये जाते, इस न्याय से। २. अजीव रूपी है या अरूपी ? रूपी-अरूपी दोनों ही है। किस न्याय से ? धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और काल-ये चार अरूंपी हैं और एक पुद्गलस्तिकाय रूपी है। ३. पुण्य रूपी है या अरूपी ? रूपी है। किस न्याय से ? पुण्य-शुभ कर्म है। कर्म पुद्गल है, रूपी है। ४. पाप रूपी है या अरूपी ? रूपी है। किस न्याय से ? पाप अशुभ कर्म है। कर्म पुद्गल है। वह रूपी है। ५. आस्रव रूपी है या अरूपी ? अरूपी। किस न्याय से ? आस्रव जीव का परिणाम है। जीव का परिणाम जीव है। जीव अरूपी है क्योंकि उसमें पाँच वर्ण आदि नहीं पाये जाते। ६. संवर रूपी है या अरूपी ? संवर अरूपी है। किस न्याय से? क्योंकि उसमें पाँच वर्णादि नहीं पाये जाते। ७. निर्जरा रूपी है या अरूपी ? अरूपी है। किस न्याय से ? निर्जरा जीव का परिणाम है। उसमें पाँच वर्णादि नहीं पाये जाते। ८. बन्ध रूपी है या अरूपी ? रूपी है। किस न्याय से ? बन्ध शुभ-अशुभ कर्मरूप है। कर्म पुद्गल है। वह रूपी है। ६. मोक्ष रूपी है या अरूपी ? अरूपी है। किस न्याय से ? समस्त कर्मों से मुक्त करे, वह मोक्ष है। वह अरूपी है। सिद्ध जीव में पाँच वर्णादि नहीं पाये जाते।

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