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जीव अजीव : टिप्पणी
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दूसरे मत के अनुसार जीव जीव हैं, अजीव अजीव और शेष जीवाजीव ।
स्वामीजी का मत इन दोनों ही अभिप्रायों से भिन्न है। स्वामीजी ने आस्रव की ढालों में आगम के आधार से आस्रव को जीव सिद्ध किया है। उनके अभिपय से जीव, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष-ये पाँच जीव हैं और अजीव, पुण्य पाप और बंध- ये चार अजीव ।
जीव और अजीव के सिवा अवशेष सात पदार्थ जीवाजीव हैं, इस बात से भी स्वामीजी सहमत नहीं । आगम में जब दो ही पदार्थ बताये गये हैं तो फिर मिश्र पदार्थ की कल्पना नहीं की जा सकती। अवशेष सात पदार्थों में से प्रत्येक या तो जीव कोटि में आयेगा अथवा अजीव कोटि में । वे जीवाजीव कोटि के नहीं कहे जा सकते क्योंकि ऐसी कोटि होती ही नहीं। स्वामीजी के मत से पुण्य, पाप और बन्ध अजीव कोटि के हैं
और आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष जीव कोटि के । उसका कारण स्वामीजी ने संक्षेप में प्रस्तुत ढाल में ही बतला दिया है।
यहाँ 'पाना की चर्चा' से कुछ प्रश्नोत्तरों को उद्धृत किया जाता है, जिससे स्वामीजी का मन्तव्य स्पष्ट होता है :
प्रश्नोत्तर-१
१. जीव जीव है या अजीव ? जीव। किस न्याय से ? सदाकाल जीव जीव ही रहता है; कभी अजीव नहीं होता।
२. अजीव जीव है या अजीव ? अजीव। किस न्याय से ? अजीव सदाकाल अजीव ही रहता है, कभी जीव नहीं रहता।
३. पुण्य जीव है या अजीव ? अजीव। किस न्याय से ? शुभ कर्म पुण्य पुद्गल है। पुद्गल अजीव है।
४. पाप जीव है या अजीव ? अजीव । किस न्याय से ? पाप अशुभ कर्म है। कर्म पुद्गल है। पुद्गल अजीव है।
५. आस्रव जीव है या अजीव ? जीव है। किस न्याय से ? शुभ-अशुभ कर्मों को ग्रहण करनेवाला आस्रव है। वह जीव है।
६. संवर जीव है या अजीव ? जीव है। किस न्याय से ? कर्मों को जो रोकता है, वह संवर जीव है।