Book Title: Nav Padarth
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 785
________________ ७६० नव पदार्थ ६. देस थकी करमां ने तोड़ें, जब देस थकी जीव उजलों होय। जीव उजलो हूओ छै तेहिज निरजरा, निरजरा जीव छ तिणमें संका न कोय ।। इण निरजरा ने जीव न सरधे मिथ्याती।! १०. करमां ने तोड़े ते निश्चेंइ जीव, करम तूटां थकां उजलो हुवो जीव । उजला जीव ने निरजरा कही जिण, जीव रा गुण छे उजल अत ही अतीव।। इण निरजरा ने जीव न सरधे मिथ्याती।। ११. समसत करम थकी मूंकावें, ते करम रहीत आतमा मोख। इण संसार दुख थी छूट पडया छे, ते तो सीतली भूत थया निरदोष ।। तिण मोष ने जीव न संरधे मिथ्याती।। १२. करमा थकी मूंकावे ते मोष, तिण मोष ने कहिजें सिध भगवान। . वले मोष ने परमपद निरवांण कहिजे ते तों निश्इ निरमल जीव सुध मान।। तिण मोष ने जीव न सरधे मिथ्याती।। १३. पुन पाप नें बंध एं तीनूंइ अजीव, त्यांने जीव नें अजीव सर दोनूंइ। एहवी उंधी सरधा रा छं मूंढ मिथ्याती, त्यां साध रा भेष में आतम विगोइ।। पुन पाप बंध नें अजीव न सरधे मिथ्याती।। १४. आश्रव संवर निरजरा में मोष, एं निमाइ निश्चें जीव च्यांरुइ। त्यांने जीव अजीव दोइ सरधे, तिण उंधी सरधा सूं आतम विगोइ।। यां च्यारां में जीव न सरधे मिथ्याती।। १५. नव पदार्थ में पांच जीव कह्या जिण, च्यार पदार्थ अजीव कह्या भगवान। ए नव पदार्थ रो निरणों करसी, तेहिज समकत में सुध मांन।। जीव अजीव ने सुध न सरधे मिथ्याती।।

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