Book Title: Nav Padarth
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 783
________________ ७५८ नव पदार्थ २. जीव अजीव टाले ने सात पदार्थ, त्यांने जीव अजीव सरधे दोनूंइ। एहवी उंधी सरधा रा छे मूढ मिथ्याती, त्यां साधू रो भेष ले आतम विगोइ।। जीव अजीव सूधा न सरधे मिथ्याती।। ३. पुन पाप नें बंध एं तीनूंइ करम, करम ते निश्चेंइ पुद्गल जांणों। पुदगल छे ते निश्चेंइ अजीव, तिण मांहें संका मूल म आंणो।। पुन पाप नें अजीव न सरधे मिथ्याती।। ४. आठ करमां नें रूपी कह्या छे जिणेसर, त्यांमें पांचूंइ वर्ण नें गंध , दोय । वले पांचूंइ रस ने च्यार फरस छे, एं सोलें बोल पुद्गल अजीव छ सोय ।। पुन पाप ने अजीव न सरधे मिथ्याती।। ५. पुन पाप बेइं नें ग्रहे आश्रव, पुन पाप ग्रहे ते निश्चें जीव जाणों। निरवद जोगां सूं पुन ग्रहे छे, सावद्य जोगां सूं पाप लागें छे आंणो।। आश्रव ने जीव न सरधे मिथ्याती।। ६. करमा नां दुवार आश्रव जीव रा भाव, तिण आश्रव नां बीसोंइ बोल पिछांण। ते बीसोंइ बोल में करमां रा करता, करमां रा करता नेश्चेंइ जीव जाणों ।। आश्रव नें जीव न सरधे मिथ्याती।। ७. आतमा नें वस करें ते संवर, आतमा वस करें ते निश्चेंइ जीव । ते तों उमसम खायक षयउपसम भाव, ए तो जीव रा भाव में निरमल अतीव ।। संवर ने जीव न सरधे मिथ्याती ।। ८. संवर ते आवता करमां ने रोकें, आवता करम रोकें ते निश्चेंइ जीव । तिण संवर नें जीव न सरधे अग्यांनी, तिणरे नरक निगोद री लागी छै नींव ।। तिण संवर ने जीव न सरधे मिथ्याती।।

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