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: १० : जीव अजीव
दोहा
१. कई वेषधारियों के घट में जीत-अजीव की पहचान नहीं
होती। ऐसे अज्ञानी भी वाणी के गोले फेंकते हैं। उनमें कुछ भी सुध-बुध नहीं दिखाई देती।
जीव अजीव का
अज्ञान (दो०१-२)
२. उनके नौ पदार्थों और षट् द्रव्यों का विनिश्चय नहीं होता।
बिना न्याय-निर्णय के वे बकते रहते हैं। इसका उनके मन में जरा भी विचार नहीं होता।
३. जिन भगवान ने जीव और अजीव दो वस्तुएँ कही हैं।
तीसरी कोई वस्तु नहीं । लोक में जो भी वस्तुएँ हैं, वे इन दो में समा जाती हैं।
नौ पदार्थ दो राशियों में समाते
(दो०३-४)
४. जिन भगवान ने नौ पदार्थ कहे हैं। जो इन नौ पदार्थों को
दो पदार्थों में नहीं डालते, उनके हृदय में अत्यन्त .
अन्धकार है। वे भ्रमवश भूले हुए हैं। ५. वे विपरीत-विपरीत प्ररूपणा करते हैं। भोले मनुष्यों को
इसका पता नहीं चलता। अतः नौ पदार्थों का निर्णय करता हूँ। चित्त लगाकर सुनो।
ढाल १. जीव चेतन पदार्थ है। अजीव अचेतन पदार्थ । इन्हें स्थूल पदार्थों को पहचानने
की कठिनाई रूप से पहचानना तो सरल है। पर उनके भेदानुभेद करने . से उन्हें पहचानना अत्यन्त कठिन होता है।