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नव पदार्थ
११. छूटा कलकलीभूत संसार थी रे, आठोंइ करमां तणो कर सोष रे। . ते अनंता सुख पांम्यां सिव-रमणी तणा रे, त्यांने कहिजे अविचल मोख रे।।
१२. त्यांरा सुखां ने नहीं कांई ओपमा रे, तीइ लोक संसार मझार रे।
एक धारा त्यांरा सुख सासता रे, ओछा, इधका सुख कदेय न हुवें लिगार रे।।
५३. तीरथ सिधा ते तीरथ मां सूं सिध हुआं रे, अतीरथ सिधा ते विण तीरथ सिध थाय रे।
तीथंकर सिधा ते तीरथ थापने रे अतीथंकर सिधा ते बिना तीथंकर ताय रे।।
१४. सयंबुधी सिधा ते पोतें समझनें रे प्रतेक बुधी सिधा ते कांयक वस्तू देख रे।
बुधबोही सिधा ते समझे ओरां कनें रे, उपदेस सुणे ने ग्यांन विशेष रे।।
१५. स्वलिंगी सिधा साधां रा भेष में रे, अनलिंगी सिधा ते अनलिंगी मांय रे।
ग्रहलिंगी सिधा ग्रहस्थरा लिंग थका रे, अस्त्रीलिंग सिधा अस्त्रीलिंग में ताय रे।।
१६. पुरषलिंग सिधा ते पुरष ना लिंग छतां रे, निपुंसक सिधा ते निपुंसक लिंग में सोय रे।
एक सिधा ते एक समें एक हीज सिध हूरे, अनेक सिधा ते एक समें अनेक सिध होय रे।।
१७. ग्यांन दसरण ने चारित तप थकी रे, सारा हूआं छे सिध निरवांण रे।
यां च्यारां विनां कोई सिध हूओ नहीं रे, ए च्यारूंई मोष रा मारग जांण रे।।