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मोक्ष पदार्थ
११.
१२.
जो आठों ही कर्मों का अन्त कर इस कलकलीभूत - जन्म-मरण व्याधिपूर्ण संसार से मुक्त हो गये हैं तथा जिन्होंने मुक्ति-रूपी रमणी के अनन्त सुख प्राप्त किए हैं उन्हीं जीवों को अविचल मोक्ष प्राप्त हुआ कहा जाता है।
१७.
तीनों लोक में उनके सुखों की कोई उपमा नहीं मिलती । उनके सुख शाश्वत और एकधार रहते हैं । उनमें कभी कम-बेश नहीं होती
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१३-१६. (१) 'तीर्थ सिद्ध'- अर्थात् जैन साधु-साध्वी श्रावक-श्राविकाओं से सिद्ध हुए, (२) 'अतीर्थ सिद्ध' - जैन तीर्थ के अतिरिक्त और किसी तीर्थ में से सिद्ध हुए, (३) 'तीर्थङ्कर सिद्ध तीर्थ की स्थापना कर सिद्ध हुए, (४) 'अतीर्थङ्कर सिद्ध' - बिना तीर्थ की स्थापना कि सिद्ध हुए, (५) 'स्वयंबुद्ध सिद्ध-स्वयं समझ कर सिद्ध हुए, (६) 'प्रत्येकबुद्ध सिद्ध' - किसी वस्तु को देखकर सिद्ध हुए, (७) 'युद्धबोधित सिद्ध' - दूसरों से समझ कर, उपदेश सुन कर सिद्ध हुए, (८) 'स्वलिंगी सिद्ध' - जैन साधु के वेष में सिद्ध हुए, (६) 'अन्यलिङ्ग सिद्ध' - अन्य साधु के वेष में सिद्ध हुए, (१०) 'गृहलिङ्ग सिद्ध' - गृहस्थ के वेष में सिद्ध हुए, (११) स्त्रीलिङ्ग सिद्ध' - स्त्री लिङ्ग में सिद्ध हुए, (१२) 'पुरुषलिङ्ग सिद्ध'- पुरुषलिङ्ग में सिद्ध हुए, (१३) 'नपुंसकलिङग सिद्ध' - नपुंसक के लिङ्ग में सिद्ध हुए, (१४) 'एक सिद्ध'- एक समय में ही सिद्ध हुए, (१५) 'अनेक सिद्ध'-एक समय में अनेक सिद्ध हुए- ये सिद्धों के पंद्रह भेद हैं ।
ये सब ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से सिद्ध होते और निर्वाण प्राप्त करते हैं। इन चारों के बिना कोई सिद्ध नहीं हुआ । मोक्ष प्राप्ति के ये चार ही मार्ग हैं।
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मोक्ष के अनन्त सुख
(गा० ११–१२)
सिद्धों के पनद्रह भेद ( गा० १३-१६)
सब सिद्धों की करनी और सुख
समान हैं ( गा० १७-१६)