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मोक्ष पदार्थ : टिप्पणी ५
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१०. गृहलिङ्गी सिद्ध : जो गृहस्थ के लिङ्ग से सिद्ध हुए हैं उन्हें गृहलिङ्ग सिद्ध कहते हैं। जैसे सुमति के छोटे भाई नागिल आदि ।
११. स्त्रीलिङ्गी सिद्ध : जो स्त्री-शरीर से सिद्ध हुए हैं उन्हें स्त्री-लिङ्ग सिद्ध कहते हैं। जैसे चन्दनबाला।
१२. पुरुषलिङ्गी सिद्ध : जो पुरुष-शरीर से सिद्ध हुए हैं उन्हें पुरुषलिङ्ग सिद्ध कहते हैं। जैसे गणधर आदि।
१३. नपुंसकलिङ्ग सिद्ध : जो नपुंसक शरीर से सिद्ध हुए हैं उन्हें नपुंसकलिङ्ग सिद्ध कहते हैं। जैसे गाङ्गेय अनगार आदि।
१४. एकसमय सिद्ध : जो एक समय में अकेले सिद्ध हुए हैं उन्हें एक समयसिद्ध कहते हैं। जैसे महावीर।
१५. अनेकसमय सिद्ध : जो एक समय में अनेक सिद्ध हुए हैं उन्हें अनेक सिद्ध कहते हैं। एक समय में दो से लेकर १०८ सिद्ध तक हो सकते हैं।
स्वामीजी ने इस वर्णन का आधार ठाणाङ्ग सूत्र है'।
उत्तराध्ययन में सिद्धों का वर्णन इस प्रकार मिलता है : “सिद्ध अनेक प्रकार के हैं-स्त्रीलिङ्ग सिद्ध, पुरुषलिङ्ग सिद्ध, नपुंसकलिङ्ग सिद्ध, स्वलिङ्ग सिद्ध, अन्यलिङ्ग सिद्ध और गृहलिङ्ग सिद्ध आदि। सिद्ध जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट अवगाहना से हो सकते हैं। ऊर्ध्व, अधो और तिर्यग् लोक से हो सकते हैं। समुद्र और जलाशय से भी सिद्ध हो सकते हैं एक समय में नपुंसकलिङ्गी दस, स्त्रीलिङ्गी बीस और पुरुषलिङ्गी एकसौ आठ सिद्ध हो सकते हैं। गृहलिङ्ग में चार, अन्यलिंग में दस, स्वलिंग में एकसौ आठ सिद्ध एक समय में हो सकते हैं। एक समय में जघन्य अवगाहना से चार, उत्कृष्ट अवगाहना से दो और मध्यम अवगाहना से एकसौ आठ सिद्ध हो सकते हैं। एक समय में ऊर्ध्व लोक में चार, समुद्र में दो, नदी में तीन, अधोलोक में से बीस और तिर्यक लोक में एकसौ आठ सिद्ध हो सकते हैं।"
१. ठाणाङ्ग १.१५१ २. उत्त० ३६.५०-५५