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मोक्ष पदार्थ
आठ गुणों की
प्राप्ति
२. देवों के सुख अति अधिक और अपरिमित होते हैं। परन्तु
तीनों काल के देव-सुख एक सिद्ध भगवान के सुख के
अनन्तवें भाग की भी बराबरी नहीं कर सकते। ३-४. ये सांसारिक सुख पौद्गलिक और निश्चय ही रोगीले हैं।
जिस तरह पांव-रोगी को खाज अत्यन्त मीठी लगती है, उसी प्रकार पुण्य से प्राप्त ये सांसारिक सुख कर्मों से लिप्त जीव को अच्छे लगते हैं। ऐसे रोगीले सुखों से कभी आत्मा का कार्य सिद्ध नहीं होता। जो जीव ऐसे सुखों से प्रसन्न होता है उसके अतीव पाप कर्मों का संचय होता है। ऐसा प्राणी मोक्ष के सुखों से बहुत दूर हो जाता है। और बाद में नरक और निगोद के दुखों का भागी होता है। जिन का कर्मों से मोक्ष हो जाता है-वे सिद्ध भगवान जन्म-मरणरूपी दावानल से मुक्त हो जाते हैं। वे आठों ही कर्मों को दूर कर देते हैं जिससे उनके अनन्त आठ गुणों की प्राप्ति होती है। जीव का मोक्ष तो इस लोक में ही हो जाता है। वह यहीं सिद्ध भगवान बन जाता है। फिर एक ही समय में जीव सीधा सिद्धों के वास-स्थान-लोक के अन्त को पहुंच-आलोक
को स्पर्श करता हुआ स्थिर होता है। ८-१०. वीतराग सिद्ध भगवान के (१) अनन्त ज्ञान, (२) अनन्त
दर्शन और (३) अनन्त आत्मिक सुख होता है। भगवान के (४) क्षायिक सम्यक्त्व और (५) अटल अवगाहना होती है। उनमें (६) अमूर्तित्व और (७) अगुरुलघुत्व ये श्रेष्ठ गुण भी होते हैं। उनके अमूर्तिभाव प्रगट हो जाता है और हल्का या भारीपन मालूम नहीं देता, इसलिए वे अमूर्त और अगुरुलघु कहलाते हैं। वे अंतराय कर्म से रहित होते हैं इसलिए उनके (८) अनन्त वीर्य होता है। उनको पौद्गलिक सुखों की कामना नहीं होती, वे तो अपने स्वाभाविक गुण-सहज आनन्द में रमते रहते हैं। उनके कोई कमी नहीं दीखती।
जीव सिद्ध कहाँ होता है ?
सिद्धों के आठ गुण
(गा० ८-१०)