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आस्त्रव पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी : १७
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“लेश्या और योग में एकत्व - जैसा देखा जाता है। अगर दोनों में अन्तर है तो वह ज्ञानी ग्राह्य है जहाँ सलेश्यी वहाँ सयोगी, जहाँ सयोगी वहाँ सलेश्यी, जहाँ अयोगी वहाँ अलेश्यी और जहाँ अलेश्यी वहाँ अयोगी देखा जाता है।
"क्षायक क्षयोपशम भाव से करनी करते समय उदयभाव भी सहचर रूप से प्रवर्तन करता है। जिससे पुण्य लगता है । यथातत्थ चलने से ईर्यावही कर्म लगते हैं। वे भी उदयभाव योग से लगते हैं ।"
स्वामीजी ने यहाँ लेश्या आदि के विषय में जो कहा है उसका आगमिक और ग्रन्थान्तर आधार नीचे दिया जाता है ।
एक बार गौतम ने पूछा - "भगवन् ! कृष्णलेश्या के कितने वर्ण हैं ?" भगवान ने उत्तर दिया- "गौतम ! द्रव्य लेश्या को प्रत्याश्रित कर पाँच वर्ण यावत् आठ स्पर्श कहे गए हैं। भाव लेश्या को प्रत्याश्रित कर उन्हें अवर्ण कहा गया है। यही बात शुक्ल लेश्या तक जाननी चाहिए ।"
दस विध जीव-परिणाम में लेश्या परिणाम भी है । भाव लेश्या जीव-परिणाम है४ । द्रव्य लेश्या अष्टस्पर्शी पुद्गल है। वह जीव-परिणाम नहीं । जीव उदयनिष्पन्न के ३३ बोलों में छः ही लेश्याओं को गिनाया है । ये भी भाव लेश्याएँ हैं ।
छः लेश्याओं में से प्रथम तीन को अधर्म और अवशेष तीन को धर्म लेश्याएँ कहने का आधार उत्तराध्ययन की निम्न गाथा है :
किण्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ । तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ ।
एक बार गौतम ने पूछा : “भगवन् ! छः लेश्याओं में से कौन-कौन-सी अविशुद्ध हैं और कौन-कौन-सी विशुद्ध ?" भगवान ने उत्तर दिया- " गौतम ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापातलेश्या - ये तीन लेश्याएँ अविशुद्ध हैं और तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या - ये तीन लेश्याएँ विशुद्ध हैं । हे गौतम! इसी तरह पहली तीन अप्रशस्त
१. टीकम डोसी की चर्चा
२.
भगवती १२.५ :
कण्हलेसा णं भंते ! कइवन्ना - पुच्छा गोयमा ! दव्वलेसं पडुच्च पंचवन्ना, जाव - अट्ठासा पण्णत्ता भावलेसं पडुच्च अवन्ना ४ एवं जाव सुक्कलेस्सा।
३. ठाणाङ्ग १०.१.७१३; मूल पाठ के लिए देखिए पृ० ४०५ टि० २५ ४. देखिए पृ० ४०६ टि० २५
५. अनुयोगद्वार सू० १२६: मूल पाठ के लिए देखिए पृ० ४०६ टि० २६