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बंध पदार्थ : टिप्पणी १
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भाग विशेष को-उसकी चोटी को-अलग रख दिया जाय तो ऐसा भी कोई स्थान न मिलेगा जहाँ कि स्वतन्त्र जीव-पुद्गल-मुक्त जीव प्राप्त हो सके। जीव और पुद्गल सत् पदार्थ होने से उनका पारस्परिक बन्ध भी सत्य है और वह सत् पदार्थ है। जीव और कर्म का बंध काल्पनिक बात नहीं पर क्षण-क्षण होनेवाली घटना है। इसीलिए बंध को आठवाँ सदभाव पदार्थ माना गया है। ___जीव और कर्म के संश्लेष को बंध कहते हैं। जीव अपनी वृत्तियों से कर्म-योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है। इन ग्रहण किये हुए कर्म-पुद्गल और जीव-प्रदेशों का बंधन-संयोग बंध हैं।
श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती लिखते हैं-"जिस चैतन्य परिणाम से कर्म बंधता है, वह भाव बंध है तथा कर्म और आत्मा के प्रदेशों का अन्योन्य प्रवेश-एक दूसरे में मिल जाना-एक क्षेत्रावगाही हो जाना द्रव्य बंध है।
अभयदेवसूरि कहते हैं-"बेड़ी का बन्धन द्रव्य बन्ध है और कर्म का बन्धन भावबन्ध ।"
जीव और कर्म के प्रदेश-बन्ध को समझाते हुए स्वामीजी ने तीन दृष्टान्त दिए
१. जिस तरह तेल और तिल लोलीभूत-ओतप्रोत होते हैं, इसी तरह बन्ध में जीव और कर्म लोलीभूत होते हैं।
२. जिस तरह घृत और दूध लोलीभूत होते हैं, उसी तरह बन्ध में जीव और कर्म लोलीभूत होते हैं।
१. उत्त० २८.१४ नेमिचन्द्रीय टीका :
'बन्धश्च'-जीवकर्मणोः संश्लेष : २. ठाणाङ्ग १.४.६ की टीका : (क) बन्धनं बन्धः सकषायत्वात् जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गलान् आदत्ते यत् स बन्ध इति
भाव : (ख) ननु बन्धो जीवकर्मणोः संयोगोऽभिप्रेतः ३. द्रव्यसंग्रह २.३२ :
बज्झदि कम्मं जेण दु चेदणभावेण भावबन्धो सो।
कम्मादपदेसाणंअण्णोण्णपवेसणं इदरो।। ४. ठाणाङ्ग १.४.६ टीका :
द्रव्यतो बन्धो निगडादिभिर्भावतः कर्मणा