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नव पदार्थ
इम कह्यो तो रागपणो सावज छै अने तप निरवद्य छै सराग स्यूं तो पाप बंधे ने तप स्यूं कर्म कटे ते निरवद्य छै। इयां सरागपणे में त्याग रो अभिप्राय छै सो तप छै तिम तप चोखो पिण वंछा चोखी नहीं।
५. उववाई में कह्यो चार प्रकारे देवता हुवे ते सराग संजम १ संजमासंजम २ बाल तप ३ अकाम निर्जरा ४ । इण में संजमासंजम ते काई संजम कांई असंजम, ते असंजम तो खोटो संजम थी देवता थाये। बाल तप कहिये तप तो चोखो ते तप थी तो देवता हुवे ने बालपणो खोटो । अकाम निर्जरा ते तप चोखो तिण थी देवता हुवे अकाम ते निर्जरा नी बंछा नहीं ते अकाम पणो शुद्ध नहीं । तिम तिहां पिण तप चोखो ने बंछा खोटी छै।
६. उववाई प्रश्न ५ में कह्यो-निर्जरा री बंछा रहित तप, कष्ट, भूख, तृषा, सी, तावड़ो, शीलादिक थी दस सहस वर्ष ने आऊषे देवता हुवे ए निर्जरा नी वंछा नहीं ते खोटी पिण भूखादिक खमे ते निरवद्य छै तेह थी देवता हुवे छै।
७. प्रश्न ८ में कह्यो जे बाल-विधवा सासरे-पीहर नी लाजे करी निर्जरा री वंछा बिना शील पाले तो ६४ हजार वर्षे आऊषे देवगति में उपजे । इहां लाजे करी पाले ते संसार नी कीर्त नी अर्थे ठहरी । जे पोतां नो अपजश टालवा रखे अजश हुवे लोकभंडा कहे इसा भाव सूं शील पाले तेह ने शोभा नी कीर्त नी वंछा छै। तेह ने पिण शील पालवा रो लाभ छै तिण सूं शील पाल्यां अवगुण नहीं।
८. तथा कोई शोभारे निमत्ते साधु ने दान देवे, पुत्रादिक ने अर्थे देवे। साधु ज्ञान सूं तथा उनमान सूं जाणे तो आहार लेवे के नहीं, तेह ने धर्म नहीं जाणे तो क्यूं लेवे ? तेह पुत्रादि नी वंछा नो तो पाप छै, ने साधु ने देवे ते धर्म छै तिण सूं साधु बहिरे छै। इमिज शील तप जाणवो।
६. भगवती श० १ उद्देशे २ कह्यो असंजती भवि द्रव्य देव उत्कृष्टो नवग्रीवेग में जाय। तिहां टीका में कह्यो भव्य तथा अभव्य पिण जावे। ते किम जाय ? साधु नो रूप अखण्ड क्रिया आचार ना पालवा थी। तो जे अभव्य पिण जाये ते किम ? अखण्ड साधु नी क्रिया किण अर्थे पाले ? तेहनो उत्तर-साधु ने चक्रवर्तादिक पूजता देखी ते पूजा श्लाघा ने अर्थे बाह्य क्रिया अखण्ड पाले तेह थी नवग्रीवेग जाय एहवू कयूं छै । जे अभव्य नवग्रीवेगे जाये ए तो प्रसिद्ध छ । ते तो मोक्ष सरधे नहीं । तेह ने सकाम निर्जरा तो नथी दीसती। ते तो पूजा-प्रशंसा रे अर्थे साधु री क्रिया आचार पाले ते भलो छ तिवारे तेह थी