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निर्जरा पदार्थ (टाल : २): टिप्पणी १३
(३) शैक्ष' का वैयावृत्त्य। (४) ग्लान' का वैयावृत्त्य। (५) तपस्वी साधु का वैयावृत्त्य। (६) स्थविर का वैयावृत्त्य। (७) साधर्मिक' का वैयावृत्त्य। (८) कुल का वैयावृत्त्य। (६) गण का वैयावृत्त्य। (१०) संघ का वैयावृत्त्य।
ठाणाङ्ग में कहा है-आचार्यादि की अग्लान मन से-अखिन्न भाव से वैयावृत्त्य करनेवाला श्रमण निग्रंथ महा निर्जरा और महा पर्यवसान का करनेवाला होता है।
१. नव प्रवर्जित साधु २. रोगी साधु ३. वृद्ध साधु ४. साधु-साध्वी ५. कुल साधुओं का गच्छ-समुदाय ६. गण=कुल समुदाय ७. संघ गण समुदाय ८. वैयावृत्त्य के ये दस भेद सेवा-पात्र की अपेक्ष से किये गये हैं। यहाँ जो क्रम बताया
गया है वह औपपातिक सूत्र के अनुसार है। भगवती सूत्र (२५.७) तथा ठाणाङ्ग (५.१.३६६-६७) में क्रम से भिन्न है; यथा-१-(१). २-(२), ३-(६). ४-५). ५-(४). ६-(३), ७-(८), ८-(६), ६-(१०), १०-७)। एक और भी क्रम मिलता है जो निम्न गाथा में परिलक्षित है :
आयरिय उवज्झाए थेर तवस्सी गिलाण सेहाणं। साहम्मिय कुल गण संघसंगयं तमिह कायव्वं ।।
(उत्त० ३०.३३ की नेमिचन्द्रीय टीका में उद्धृत) ६. ठाणाङ्ग ५.१.३६६-३६७