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नव पदार्थ
व्युत्सर्ग' (३) उपधि-व्युत्सर्गर (8) आहार-व्युत्सर्गरे ।
___. भाव व्युत्सर्ग तप तीन प्रकार का कहा है-(क) कषाय-व्युतसर्ग (ख) संसार-व्युत्सर्ग और (ग) कर्म-व्युत्सर्ग।
(क) कषाय-व्युत्सर्गः तप चार प्रकार का कहा है : (१) क्रोधकषाय-व्युत्सर्ग, (२) मानकषाय-व्युत्सर्ग (३) मायाकषाय-व्युत्सर्ग और (४) लोभकषाय-व्युत्सर्ग।
(ख) संसार-व्युत्सर्ग तप चार प्रकार का कहा है : (१) नैरयिकसंसार-व्युत्सर्ग (२) तिर्यसंसार-व्युत्सर्ग (३) मनुष्यसंसार-व्युत्सर्ग और (४) देवसंसार-व्युत्सर्ग।
(ग) कर्म-व्युत्सर्ग तप आठ प्रकार का कहा है : (१) ज्ञानावरणीयकर्म-व्युत्सर्ग (२) दर्शनावरणीयकर्म-व्युत्सर्ग (३) वेदनीयकर्म-व्युत्सर्ग (४) मोहनीयकर्म-व्युत्सर्ग (५) आयुष्यकर्म-व्युत्सर्ग (६) नामकर्म-व्युत्सर्ग (७) गोत्रकर्म-व्युत्सर्ग और (८) अन्तरायकर्मव्युत्सर्ग। १. तपस्या या उत्कृष्ट साधना के लिये साधु-समुदाय का त्याग कर एकाकी रहना-गण-व्युत्सर्ग
तप कहलाता है। २. वस्त्र, पात्र आदि उपधि का त्याग-उपधि-व्युत्सर्ग तप कहलाता है। ३. भक्त-पान आदि का त्याग-आहार-व्युत्सर्ग कहलाता है। ४. अनुच्छेद १,२ और ३ के विषय को संग्रह करनेवाली निम्नलिखित गाथाएँ मिलती हैं :
दव्वे भावे अ तहा दुहा, विसग्गो चउव्वविहो दव्वे । गणदेहोवहिभते, भावे कोहादिचाओ त्ति। काले गणदेहाणं, अतिरित्तासुद्धभत्तपाणाणं । कोहाइयाण सययं, कायव्वो होई चाओ त्ति।
(दश० १.१ की हारिभद्रीय टीका में उद्धृत) ५. क्रोध, मान, माया और लोभ-ये चार कषाय हैं। इनमें से प्रत्येक का त्याग कषाय-व्युत्सर्ग
तप कहलाता है। ६. नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव-ये चार गतियाँ हैं। इन गतियों में जीव के भ्रमण को
संसार कहते हैं। उन भावों-कृत्यों का त्याग जिनसे जीव का नरकादि कार्यो में भ्रमण
होता है-संसार-व्युत्सर्ग तप कहलाता है। ७. पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति-इन एकेन्द्रिय से लेकर पशु, पक्षी आदि तिर्यञ्च
पंचेन्द्रिय तक के जीवों की गति। ८. जिनसे जीव संसार में बंधा हुआ है और भव-भ्रमण करता है, उन्हें कर्म कहते हैं।
ये ज्ञानावरणीय भेद से आठ प्रकार के हैं। उन भावों-कार्यों का त्याग जो इन आठ प्रकार के कर्मों की उत्पत्ति के हेतु हों-कर्म-व्युत्सर्ग तप कहलाता है।
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