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निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी १७
लबद वीर्य तणों जीव करें व्यापार, तें व्यापार छे करण वीर्य जोग। तिण व्यापार में भाव जोग कहीजें, त्यांरों व्यापार में पुदगल रे संजोग।। सावध काम करें ते सावद्य जोग, निरवद काम करें ते निरवद जोग। तेतो दरब जोग पुदगल ने संघातें, दरब नें भाव जोग रों भलों संजोग ।। सावद्य जोगां तूं पाप लागें छे, निरवद जोगां सूं निरजरा होय। वले निरवद जोगां सूं पुन पिण लागें, सुभ जोगां ने संवर सरधों मत कोय।। सुभ जोग में करणी करम काटण री, संवर सूं तो रुकें , करम । सुभ जोगां नें संवर सर) छे भोला, तेतो करमा तणे वस भूला छे मर्म ।। मन वचन जोग उतकष्टा रहें तों, अन्तर मोहरत ताइ जांण। चारित तो उतकष्टों रहें तों, देसउणों कोड पूर्व परमाण।। सुभ मन वचन जोग चारित हुवे तों, चारित पिण अंतर मोहरत तांइ। जो उ चारित री थित इधकी परूपें, तिणनें आपरा बोल्या री समझ न कांई। मन वचन रा दोय दोय तीन काया रा, ए सात जोग तेरमें गुणठांणे। . जोग ने संवर कहें तिण ने पूछा कीजें, तूं किसा जोग में संवर जाणे ।। कदेयक तो सत मन जोग वरतें, कदेयक वरते जोग ववहार मन। एक एक समें दोनूं मन नहीं वरतें, इमहीज वरतें दोनूं जोग वचन ।। काया रा तीन जोग साथे नहीं वरतें, एक समय वरतें काया रो जोग एक । चारित संवर तो निरंतर एक, जोग तो जूंजूवा वरतें अनेक।। जो उ सातोंइ जोंगा ने संवर सरधे, ते सातोंइ जोग नहीं एक साथ ।
कदे कोई वरतें कदे कोई वरतें छे, संवर तो एकधारा रहें , साख्यात'।। . स्वामीजी ने अपने विचारों का उपसंहार इस प्रकार दिया है :
जोग तो व्यापार जीव तणों छे, जीव रा प्रदेश हालें त्यांही। थिर प्रदेस ने जोग सर) छे, तिणरें मोटों मिथ्यात रह्यो घट माहि।। सुभ जोग ने संवर जूआ जूआ छे, त्यां दोयां रो जूओ जूओ छे सभाव। त्यां दोयां ने एक सरधे अग्यांनी, तिण निश्चेंइ कीधों में मोटो अन्याव।। सुभ जोगां तूं पुन करम लागें छे, असुभ जोगां सूं लागें पाप करम। सुभ असुभ करम संवर सूं रुके छ, वले सुभ जोग सूं हुवें निरजरा धर्म ।।
१. भिक्षु-ग्रन्थ रत्नाकर (ख० १) : टीकम डोसी री चौपई ढा० ३ गा० १-८, ११-२२