Book Title: Nav Padarth
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 715
________________ ૬૦ नव पदार्थ कभी-कभी ऐहिक सुख की प्राप्ति द्वारा सफल होती देखी जाती है पर वह सफल होती ही है-ऐसा नियम नहीं है। आत्मिक दृष्टि से तप के साथ जुड़ी हुई कामना पाप-बन्ध का ही कारण होती है। स्वामीजी ने कहा है : पुन तणी वंछा कीयां, लागे छे एकंत पाप हो लाल। तिण सुं दुःख पामें संसार में, वधतो जाये सोग संताप हो लाल ।। पुन री वंछा सूं पुन न नीपजें, पुन तो सहजे लागे छे आय हो लाल। ते तो लागे छे निरवद जोग सूं, निरजरा री करणी सूं ताय हो लाल ।। भली लेश्या ने भला परिणाम थी, निश्चेंइ निरजरा थाय हो लाल। जब पुन लागे छे जीव रे, सहजे सभावे ताय हो लाल ।। ' जे करणी करें निरजरा तणी, पुन तणी मन में धार हो लाल। ते तो करणी खोए ने बापड़ा, गया जमारो हार हो लाल' ।। आगम में कहा है-धर्म-क्रिया केवल कर्म-क्षय के लिए करनी चाहिए अन्य किसी सांसारिक-हेतु के लिए नहीं। इससे सम्बन्धित एक अन्य सिद्धान्त भी है। जैसे धर्म-क्रिया मोक्ष के लिए करना उचित है उसी तरह धर्म-क्रिया करने के बाद उसके बदले में सांसारिक फल की कामना करना भी उचित नहीं। जो धर्म-क्रिया कर बदले में निदान-सांसारिक फल की कामना करता है, उसकी धर्म-करनी संसार-वृद्धि का कारण होती है। स्वामी जी लिखते हैं : जिन सासण में इम कह्यों, करणी करनी छे मुगत रे काज । करणी करें नीहांणो नहीं करें, ते पामें मुगत रों राज।। . करणी करें नीहांणों करें, ते गया जमारो हार। संभूत नीहाणों कर ब्रह्मदत्त हूवों, गयो सातमी नरक मझार ।। करीण करें नीहांणों नहीं करें, ते गया जमारो जीत। तामली तापस नीहांणों कीधो नहीं, तो इसाण इन्द्र हुवो वदीत।। जब देवतओं ने बाल तपस्वी तामली तापस को इन्द्र बनने के लिए निदान करने की प्रार्थना की तब उसके मन में जो विचार उठे उनको स्वामीजी ने उसके मुंह से बड़े ही मार्मिक रूप से प्रकट करवाया है। तामली सोचता है : मूंन साझ रह्यों पिण बोल्यों नहीं, नीहाणो पिण न कीयों कोय। बले मन में विचार इसडो कीयों, करणी बेच्यां आछो नहीं होय ।। १. पुण्य पदार्थ : ढाल १ गा० ५२, ५५-५७

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