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बंध पदार्थ
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२१.
जो कर्म शुभ परिणाम से बांधे गये हैं, वे शुभ रूप से उदय में आयेंगे और जो कर्म अशुभ परिणामों से बांधे गये हैं उनसे दुःख होगा"।
२२.
आठों ही कर्म पाँच वर्ण, दो गंध और पाँच रसों से युक्त होते हैं। आठों ही कर्म चोस्पर्शी होते हैं। आठों ही कर्म । पौद्गलिक और रूपी हैं।
प्रदेश-बंध और तालाब का दृष्टान्त (गा० २२-२६)
२३. कर्म रुक्ष और स्निग्ध तथा ठण्डे और गर्म होते हैं। कर्म
हल्के, भारी, सुहावने या खरदरे नहीं होते।
२४. जैसे कोई तालाब जल से भरा हो, जरा भी खाली न हो
उसी तरह जीव के प्रदेश कर्मों से भरे रहते हैं। यह उपमा एक देश समझनी चाहिए।
२५. प्रत्येक जीव के असंख्यात प्रदेश असंख्यात तालाबों की
तरह हैं। ये सब प्रदेश कर्मों से भरे रहते हैं मानो चतुष्कोण वापियाँ जल से भरी हों।
२६.
जहाँ जीव का एक प्रदेश है वहाँ कर्मों के अनन्त प्रदेश रहे हुए हैं। इसी तरह असंख्यात प्रदेशी जीव के सर्व प्रदेश कर्मों से उसी प्रकार भरे रहते हैं जिस प्रकार वापियाँ जल से। आत्मा के एक-एक प्रदेश में कर्मों का प्रवेश है |
मुक्ति की प्रक्रिया (गा०२७-२८)
२७-२८.जिस तरह जल आने के नाले को बन्द कर जल
निकलने के नाले को खोल दिया जाय तो भरा हुआ तालाब खाली हो जाता है, उसी प्रकार आस्रवरूपी नाले को रोक कर हर्षित चित्त होकर तप करने से कर्मों का अन्त आता है और जीव कर्मरहित हो जाता है