________________
बंध पदार्थ.
५. पुण्य-बंध के उदय से जीव को सात-सुख प्राप्त होते हैं। और पाप बंध के उदय होने से नाना प्रकार के दुःख होते हैं।
६.
७.
८.
६.
१०.
जब तक बंध उदय में नहीं आता तब तक जीव को जरा भी सुख-दुःख नहीं होता । ( उदय में आने तक) बंध सतारूप ही रहता है और थोड़ी भी तकलीफ नहीं देता । .
बंध के चार भेद हैं : (१) प्रकृति बन्ध, (२) स्थिति बन्ध, (३) अनुभाग बन्ध और (४) प्रदेश बन्ध । इनको अच्छी तरह से पहचानना चाहिए।
प्रत्येक कर्म की प्रकृति भिन्न-भिन्न है । प्रकृति बन्ध कर्मों के स्वभाव की अपेक्षा से होता है। प्रकृति के बंधने पर प्रकृति बन्ध होता है। प्रकृति जैसी बांधी जाती है वैसी ही उदय में आती है 1
प्रत्येक प्रकृति काल से मापी गयी है। प्रत्येक प्रकृति अमुक काल तक रहती है, बाद में विलीन हो जाती है। इस प्रकार स्थिति बन्ध कर्म-प्रकृति के कालमान की अपेक्षा से होता है।
अनुभाग बन्ध रस-विपाक - कर्म जिस-जिस तरह का रस देगा उसकी अपेक्षा से होता है। यह रस बन्ध भी प्रत्येक प्रकृति का ही होता है। जैसा रस जीव बांधता है वैसा ही उदय में आता है।
११-१२. प्रदेश बन्ध भी प्रकृति बन्ध का ही होता है। एक-एक प्रकृति के अनन्त - अनन्त प्रदेश होते हैं। वे जीव के प्रदेशों
लोलीभूत हो रहे हैं। प्रकृति बंध की यही विशेष पहचान है । आठों कर्मों की प्रकृति भिन्न-भिन्न है। एक-एक प्रकृति के अनन्त प्रदेश जीव के एक-एक प्रदेश के विशेषरूप से लोलीभूत हैं ।
६६६
कर्मों की सत्ता और उदय
बंध के चार भेद (गा० ७–१२).