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४. अनशन (गा० ७-९):
स्वामीजी ने अनशन दो प्रकार का बताया है। इसका आधार निम्नलिखित आगम-गाथा है :
इत्तरिय मरणकाला य अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकखा निरवकंखा उ बिइज्जिया' ।।
इसका भावार्थ है-अनशन दो प्रकार का होता है-एक इत्वरिक- अल्पकालिक और दूसरा यावत्कथिक - यावज्जीविक । इत्वरिक तप अवकांक्षा सहित होता है और यावत्कथिक अवकांक्षा रहित ।
नव पदार्थ
इत्वरिक अनशन, सावधिक होने से उसमें अमुक अवधि के बाद भोजन ग्रहण की भावना होती है इससे उसे सावकांक्ष-आकांक्षा सहित कहा है । यावत्कथिक अनशन मृत्यु - पर्यन्त का - मरणकाल पर्यन्त का होने से उसमें आहार ग्रहण की आकांक्षा को अवकाश नहीं होता अतः उसे निरवकांक्ष-आकांक्षा रहित कहा है ।
दोनों प्रकार के अनशनों का नीचे विस्तार से विवेचन किया जाता है ।
९. इत्वरिक अनशन :
औपपातिक सूत्र में इत्वरिक तप को अनेक प्रकार का बताते हुए उसके चौदह भेदों का उल्लेख किया गया है यथा - (१) चतुर्थभक्त - उपवास, (२) षष्ठभक्त - दो दिन का उपवास, (३) अष्टमभक्त - तीन दिन का उपवास, (४) दशम भक्त - चार दिन का उपवास, (५) द्वादशभक्त - पाँच दिन का उपवास, (६) चतुर्थदशभक्त - छह दिन का उपवास, (७) षोडशभक्त-सात दिन का उपवास, (८) अर्धमासिकभक्त - पन्द्रह दिन का उपवास, (६) मासिकभक्त-एक मास का उपवास, (१०) द्वैमासिकभक्त - दो मास का उपवास, (११) त्रैमासिकभक्त - तीन मास का उपवास, (१२) चतुर्थमासिक भक्त - चार मास का उपवास, (१३) पंचमासिकभक्त - पाँच मास का उपवास और (१४) षट्मासिकभक्त - छह महीने का उपवास ।
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जैन परम्परा के अनुसार उपवास में चार बेला का आहार छूटता है- उपवास के दिन की सुबह-शाम दो बेला का तथा पहले दिन की एक और पारणा के दिन की एक बेला का आहार । इसी कारण उपवास को चतुर्थ भक्त कहा है। बेले में बेले के दो दिनों की चार बेला और बेले के आरंभ के पहले दिन की एक बेला और पारणा के दिन की
उत्त ० ३०.६