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नंव पदार्थ
यहाँ यह ध्यान में रखने की बात है कि सिक्था का भोजन, असंस्कृत पदार्थों का भोजन, विगतरस पदार्थों का भोजन आदि आदि तप नहीं पर सिक्थों से भिन्न भोजन का त्याग, संस्कृत पदार्थों का त्याग आदि तप है। यही बात आचाम्ल तप के विषय में समझनी चाहिए। उड़द आदि का खाना आचाम्ल तप नहीं, इनके सिवा अन्य पदार्थों का न खाना तप है।
इन्द्रियों के दर्प-निग्रह, निद्रा-विजय और सुखपूर्वक स्वाध्याय की सिद्धि के लिए यह तप अत्यन्त सहायक है।
अनशन आदि प्रथम चार तपों में परस्पर इस प्रकार अन्तर है-अनशन में आहार मात्र की निवृत्ति होती है, अवमौदर्य में एक दो आदि कवल का परित्याग कर आहार मात्रा घटायी जाती है, वृतिपरिसंख्यान में क्षेत्रादि की अपेक्षा कायचेष्टा आदि का नियमन किया जाता है। रस-परित्याग में रसों का ही परित्याग किया जाता है। ८. कायक्लेश तप (गा० १४) :
उत्तराध्ययन (३०.२७) में इस तप की परिभाषा इस प्रकार मिलती है : “वीरासनादि उग्र कायस्थिति के भेदों को यथारूप में धारण करना कायक्लेश तप है।" पाठ इस प्रकार
ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा ।
उग्गा जहा धरिज्जन्ति कायकिलेसं तमाहियं ।। स्वामीजी की परिभाषा इसी आगम गाथा पर आधारित है। कायक्लेश तप अनेक प्रकार का कहा गया है । ठाणाङ्ग में एक स्थल पर इसके
१. तत्त्वा ६.१६ सर्वार्थसिद्धि : .
इन्द्रियदर्पनिग्रहनिद्राविजयस्वाध्यायसुखसिद्ध्याद्यर्थो २. . तत्त्वा ६.१६ राजवार्तिक :
भिक्षाचरणे प्रवर्तमानः साधुः एतावत्क्षेत्रविषयां कायचेष्टां कुर्वीत कदाचिद्यथा-शक्तीति विषयगणनार्थ वृत्तिपरिसंख्यानं क्रियेत, अनशनमभ्यवहर्त्तव्यनिवृत्तिः, एवम् अवमोदर्यरस
परित्यागौ अभ्यवहर्तव्यैकदेशनिवृत्तिपराविति महान् भेदः।। ३. (क) औपपातिक सम० ३० (ख) भगवती २५.७ :
से किंत कायकिलेसे ? कायकिलेसे अणेगविहे प०