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निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी ८
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सात भेद बतलाये गये हैं। अन्य स्थल पर दो पंचकस्थानकों में दस नाम मिलते हैं। औपपातिक में इसके बारह भेद बतलाये गये हैं। इससे स्पष्ट है कि कायक्लेश तप के भेदों की कोई निश्चित संख्या निर्धारित नहीं की जा सकती । वह अनेक प्रकार का है।
औपपातिक में वर्णित इस तप के बारह भेदों के नाम इस प्रकार हैं : १. स्थानायतिक, २. उत्कटुकासनिक, ३. प्रतिमास्थायी , ४. वीरासनिक, ५. नैषधिक, ६. दंडायतिक, ७. लगंडशायी, ८. आतापक, ६. अप्रावृतक, १०. अकण्डूयक, ११. अनिष्ठिवक, १२. सर्वगात्र- प्रतिकर्मविभूषाविप्रमुक्त ।
इन भेदों की व्याख्या क्रमशः इस प्रकार है :
१. स्थानायतिक : कायोत्यर्ग में स्थित होना। काय-क्लेश तप के स्थानस्थितिक 'स्थानातिग', 'स्थानातिय' आदि नामों का भी उल्लेख पाया जाता है।
२. उत्कटुकासनिक : उत्कटुक आसन में स्थित होना। जिसमें केवल पैर जमीन को स्पर्श करें, पुत जमीन से ऊपर रहे, इस तरह बैठने को ‘उत्कटुक आसन' कहते हैं।
३. प्रतिमास्थायी : प्रतिमाओं में स्थित होना। एक रात्रिक आदि कायोत्सर्ग विशेष में स्थित होना प्रतिमा है।
४. वीरासनिक : वीरासन में स्थित होना। जमीन पर पैर रखकर सिंहासन पर
१. ठाणाङ्ग ७.३.५५४ :
सत्तविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, तं०-ठाणातिते उक्कुडुयासणिते पडिमठाती वीरासणिते णेसज्जिते दंडातिते लगंडसाती। ठाणाङ्ग ५.१.३६६ : पंच ठाणाइं० भवंति, तं०-ठाणातिते उक्कडुआसणिए पडिमट्ठाती वीरासणिए णेसज्जिए. पंच ठाणाइं० भवंति, तं०-दंडायतिते लगंडसाती आतावते अवाउडते अकंडूयते। औपपातिक सम० ३० : से किं तं कायकिलेसे ? २ अणेगविहे पण्णत्ते। तं जहा-१ ठाणइिए (ठाणाइए) २ उक्कुडुयासणिए ३ पडिमट्ठाई ४ वीरासणिए ५ नेसज्जिए (दंडाययतिए लउडसाई) ६ आयावए ७ अवाउडए ८ अकंडुयए ६ अणिठूहए (धुयकेसमंसुलोमे) १० सव्वगाय
परिकम्मविभूसविप्पमुक्के, से तं कायकिलेसे। ४. (क) ठाणाङ्ग सू० ५.१.३६६ और ७.३.५५४ की टीका
(ख) औपपातिक सम० ३० की टीका