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निर्जरा पदार्थ ( ढाल : २) : टिप्पणी ५
(ख) ग्राम आदि नाना प्रकार के क्षेत्र भिक्षा के लिए हैं। इनमें इस प्रकार अमुक क्षेत्रादि में ही भिक्षा करना मुझे कल्पता है - साधु का ऐसा या अन्य नियम करना क्षेत्र से भक्तपान अवमोदरिका है' ।
'इस प्रकार' शब्द विधि के द्योतक हैं । (१) पेटा (२) अर्द्धपेटा, (३) गोमूत्रिका, (४) पतंगवीथिका, (५) शंबूकावर्त्त और (६) आयतंगत्वाप्रत्यागता - ये भिक्षाटन के प्रकार हैं। इनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है :
(१) पेटा : एक घर से भिक्षा शुरू कर दूसरे ऐसे घरों से भिक्षा करना कि स्पर्शित घरों का एक चौकोर पेटी का आकार बन जाय, वह पेटाविधि कहलाती है ।
(२) अर्द्धपेटा : एक घर से भिक्षा शुरू कर दूसरे ऐसे घरों से भिक्षा करना कि स्पर्शित घरों का एक अर्द्ध पेटा का आकार बन जाय, वह अर्द्धपेटा विधि कहलाती हैं।
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(३) गोमूत्रिका : गोमूत्रिका की तरह भिक्षाटन करना गोमूत्रिका विधि कहलाती है। एक पंक्ति में एक घर में जाकर सामने की पंक्ति के घर में जाना, फिर पहली पंक्ति के घर में जाना गोमूत्रिका विधि कहलाती है ।
(४) पतंगवीथिका : पतंग के उड़ने की तरह अनियत क्रम से भिक्षा करना अर्थात् एक घर से भिक्षा ले फिर कई घर छोड़कर फिर किसी घर में भिक्षा लेना पतंगवीथिका विधि कहलाती है ।
(५) शंबूकावर्त्त : जिस भिक्षाटन में शंख के आवृत्त की तरह पर्यटन हो, उसे शंबूकावर्त्त विधि कहते हैं ।
(६) आयतंगत्वाप्रत्यागता : एक पंक्ति के घरों से भिक्षा लेते हुए आगे क्षेत्र पर्यन्त
१. उत्त० ३०.१६-१८
२.
गामे नगरे तह रायहाणिनिगमे य आगरे पल्ली ।
खेडे कब्बडदोणमुहपट्टणमडम्बसंबाहे ।।
आसमपाए विहारे सन्निवसे समायघोसे य । थलिसेणाखन्धारे सत्थे संवट्ठकोट्टे य ।।
वाडेसु व रच्छासु व घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पइ उ एवमाई एवं खेत्तेण ऊ भवे ।।
वही : ३०.१६ :
पेडा य अद्धपेडा गोमुत्तिपयंगवीहिया चेव । सम्बुक्कावट्टाययगन्तुंपच्चागया छट्ठा ।