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निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी १
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इन तथा अन्य स्थलों के ऐसे उद्गारों से यह धारणा बनती है कि इहलोक-परलोक के अर्थ तपादि क्रिया करने में धर्म नहीं है।
श्री जयाचार्य के सम्मुख यह प्रश्न उपस्थित हुआ लगता है। उन्होंने इसका स्पष्टीकरण बड़े विस्तार से किया है।
श्री जयाचार्य लिखते हैं-"पूजा श्लाघा रे अर्थे तपसादिक करे ते पिण अकाम निर्जरा छ । ए पूजा श्लाघा नी बांछा आज्ञा मांहि नथी तेथी निर्जरा पिण नहीं हुवे। ते बांछा थी पुन्य पिण नहीं बंधे । अने जे तपसा करे भूख तृषा खमै तिण में जीव री घात नथी ते माटै ए तपस्या आज्ञा मांहि छै । निर्जरा रो अर्थी थको न करै तिण सूं अकाम निर्जरा छै। एह थकी पिण पुन्य बंधे छै पिण आज्ञा बारला कार्य थी पुन्य बंधै नथी'।
श्री जयाचार्य ने अन्यत्र लिखा है :
"कोई कहै दशवैकालक में कह्यो इहलोक-परलोक रा जश कीर्त नें अर्थे तप न करणो, एक निर्जरा ने अर्थे तप करणो । सो इहलोक-परलोक जश-कीर्त अर्थे तप करे सो तप खोटो, ते तप सूं पाप बंधे, ते तप आज्ञा बाहिर छै, ते तप सावध छै, ते तप सूं दुर्गति जाय, इम कहै ते नो उत्तर
१. ए तप खोटो नहीं, इहलोक-परलोक नी बंछा खोटी छै| बंछा आसरे भेलो पाठ कह्यो
२. घणा वर्ष संजम तप पाली नियाणों करे तो बंछा खोटी पिण तप संजम पाल्यो ते खोटो नहीं तिम वर्तमान आगमियां काल रो पिण तप बंछा सहित छै ते बंछा खोटी पिण तप खोटो नहीं।
___ ३. सुयगडांग श्रु० १ अ० ८ गाथा २४ “तेसिं पि तवो असुद्धो-जे साधु अनेरा गृहस्थ ने जणावी तप करे तप करी पूजा श्लाघा बंछे ते तप अशुद्ध कह्यो । इहां पिण पूजा-श्लाघा आसरी अशुद्ध बंछा छ पिण तप चोखो । छठे गुणठाणे पिण तप करे आचार पले छै सो तिठे पिण पूजा-श्लाघा री लहर आवा रो ठिकाणो छै तो त्यारे लेखे ते पिण तप शुद्ध न कहिए। अप्रमादी रे खोटी लहर न आवे तो त्यारे तप शुद्ध कहिए। .. ४. भगवती श० २ उ० ५-तुंगीया नगरी रा श्रावकां रा अधिकारे सराग संजम १ सराग तप २ बाकी कर्म ३ कर्म पुद्गल नो संग ४ यां च्यारां स्यूं साधु देवलोक जाय
१. भगवती नी जोड़ : खंधक अधिकार ८