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निर्जरा पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी ११
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स्वामीजी ने यहाँ घनघनाती कर्मों के क्षय से उत्पन्न क्षायिकभावों की चर्चा की है।
चारों घनघाती कर्मों के क्षय से समुच्यरूप से जीव के नौ बोल उत्पन्न होते हैं-केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, दान लब्धि, लाभ लब्धि, भोग लब्धि, उपभोग लब्धि और वीर्य लब्धि । __ भिन्न-भिन्न घाती कर्मों की अपेक्षा क्षय से उत्पन्न भावों का विवरण इस प्रकार
है :
ज्ञानावरणीय कर्म के सर्वथा क्षय होने से क्षायिकभाव केवलज्ञान उत्पन्न होता है। दर्शनावरणीय कर्म के सर्वथा क्षय से क्षायिकभाव केवलदर्शन उत्पन्न होता है। मोहनीयकर्म के सर्वथा क्षय से क्षायिकभाव सम्यक्त्व और क्षायिकभाव चारित्र प्राप्त होते हैं। अन्तराय कर्म के सर्वथा क्षय से पाँचों क्षायिक लब्धियाँ-दानलब्धि, लाभ लब्धि, भोग लब्धि, उपभोग लब्धि और वीर्य लब्धि प्रकट होती है। क्षायिक अनन्त वीर्य उत्पन्न होता है।
घाती कर्मों के सर्वथा क्षय से जो भाव उत्पन्न होते हैं वे आत्मा की विशुद्ध स्थिति के द्योतक हैं। इन कर्मों के क्षय से आत्मा में अनन्त चतुष्टय उत्पन्न होता है-अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र और अनन्त वीर्य । घाती कर्मों के क्षय से आत्मा का इस प्रकार से उज्ज्वल होना निर्जरा है।
श्री जयाचार्य लिखते हैं
"ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से निष्पन्न क्षायिक केवलज्ञान षट् द्रव्यों में जीव और नौ पदार्थों में जीव और निर्जरा है । दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से निष्पन्न क्षायिक केवल दर्शन षट् द्रव्यों में जीव और नौ पदार्थों में जीव और निर्जरा है। मोहकर्म के क्षय से निष्पन्न क्षायिक सम्यक्त्व और चारित्र षट् द्रव्यों में जीव और नौ पदार्थों में जीव, संवर
और निर्जरा है। दर्शनमोह के क्षय से उत्पन्न क्षायिक सम्यक्त्व षट् द्रव्यों में जीव और नौ पदार्थों में जीव, संवर और निर्जरा है। चतुर्थ गुणस्थान में होनेवाला क्षायिक सम्यक्त्व षट् द्रव्यों में जीव और नौ पदार्थों में जीव और निर्जरा है। यह संवर नहीं है। विरत की क्षायिक सम्यक्त्व षट् द्रव्यों में जीव और नौ पदार्थों में जीव और संवर है। यह पाँचवें गुणस्थान से शुरू होता है। चारित्रमोह के क्षय से उत्पन्न क्षायिक चारित्र षट् द्रव्यों में जीव और नव पदार्थों में जीव और संवर है। अन्तराय कर्म के क्षय से उत्पन्न पाँच क्षायिक