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निर्जरा पदार्थ (टाल : २)
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५४. निर्जरा की करनी से कर्मों की निर्जरा होती है, इसलिए
यह निरवद्य है। निर्जरा और निर्जरा की करनी दोनों भिन्न-भिन्न हैं।
निर्जरा और निर्जरा की करनी भिन्न-भिन्न हैं (गा० ५४-५६)
५५. निर्जरा निश्चय ही मोक्ष का अंश है। जीव का देशतः
उज्ज्वल होना निर्जरा है। जिसके निर्जरा की करनी से प्रेम हो गया है, उसने मुक्ति की नींव डाल दी है।
५६.
वैसे तो निर्जरा सहज ही अनादि काल से हो रही है, पर वह हो-हो कर मिट जाती है। जो जीव नये कर्म-बंध से निवृत्त नहीं होता, वह संसार में ही गोता खाता रहता है |
५७. निर्जरा की करनी को समझाने के लिए श्रीनाथद्वारा में
संवत् १८५६ के चेत बदी २ गुरुवार को यह जोड़ की गई
रचना स्थान काल और संवत