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नव पदार्थ
रसनेन्द्रिय आस्रव है । प्रत्याख्यान द्वारा रसनेन्द्रिय को वश में करना, स्वादों में राग-द्वेष न करना रसनेन्द्रिय संवर है ।
(१५) स्पर्शनेन्द्रिय संवर ( गा० ११ ) :
यह स्पर्शनेन्द्रिय आस्रव का प्रतिपक्षी है। भले-बुरे स्पर्शो में राग-द्वेष न करना स्पर्शनेन्द्रिय आस्रव है। प्रत्याख्यानपूर्वक स्पर्शनेन्द्रिय को वश में करना, स्पर्शो में राग-द्वेष न करना स्पर्शनेन्द्रिय संवर है ।
(१६) मन संवर (गा० १२) :
यह मनयोग आस्रव का प्रतिपक्षी है। अच्छे-बुरे मनोयोगों का संपूर्ण निरोध मन संवर
है ।
(१७) वचन संवर ( गा० १२) :
यह वचनयोग आस्रव का प्रतिपक्षी है। शुभाशुभ दोनों प्रकार के वचनों का सम्पूर्ण निरोध वचन संवर है ।
(१८) काय संवर ( गा० १२ ) :
यह काययोग आस्रव का प्रतिपक्षी है। शुभाशुभ दोनों प्रकार के कार्यों का सम्पूर्ण निरोध काय संवर है ।
(१९) भंडोपकरण संवर ( गा० १३ ) :
यह भंडोपकरण आस्रव का प्रतिपक्षी है। त्यागपूर्वक भंडोपकरणों का सेवन न करना भंडोपकरण संवर है। मुनि के लिए उनमें ममत्व न करना अथवा उनसे अयतना न करना संवर है।
(२०) सूची- कुशाग्र संवर ( गा० १३ ) :
यह सूची-कुशाग्र आस्रव का प्रतिपक्षी है। त्यागपूर्वक सूची - कुशाग्र का सेवन न करना सूची- कुशाग्र संवर है। मुनि के लिए उनमें ममत्व न करना अथवा उनसे अयतना न करना संवर है।
टीकम डोसी ने स्वामीजी से चर्चा करते हुए कहा था- " संवर दो तरह के होते हैं- (१) निवर्तक और (२) प्रवर्तक । अप्रमाद में प्रवृत्ति, अकषाय में प्रवृत्ति, शुभ योगों में प्रवृत्ति, दया में प्रवृत्ति, सत्य में प्रवृत्ति, दत्तग्रहण में प्रवृत्ति, शील में प्रवृत्ति, अपरिग्रह में प्रवृत्ति, पाँचों इन्द्रियों की शुभ प्रवृत्ति, मन-वचन-काय की भली प्रवृत्ति आदि सब प्रवर्तक संवर हैं।"
टीकम डोसी की चर्चा ।
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