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नव पदार्थ
एक बार गौतम के प्रश्न पर भगवान महावीर ने उत्तर में कहा था-"पुलाक निर्ग्रन्थ सामायिक संयम और छेदोपस्थापनीय संयम में होता है, पर परिहारविशुद्धिक और सूक्ष्मसंपराय अथवा यथाख्यात संयम में नहीं होता। यही बात बकुश निर्ग्रन्थ और प्रतिसेवनाकुशील निर्ग्रन्थ के सम्बन्ध में समझनी चाहिए। कषाय-सुशील निर्ग्रन्थ सामायिक संयम यावत् सूक्ष्मसम्पराय संयम में होता है, पर यथाख्यात संयम में नहीं होता। निर्ग्रन्थ सामायिक यावत् सूक्ष्यसम्पराय संयम में नहीं होता, पर यथाख्यात संयम में होता है। स्नातक के विषय में भी ऐसा ही समझना चाहिए।" .
इस वार्ता से स्पष्ट है कि पाँचों ही निर्गन्थ संवृत्तात्मा होते हैं-संवरयुक्त होते हैं। ८. सामायिक चारित्र (गा० १९-२०) :
सपंक जल को साफ करने के लिए जब उसके कतक (फिटकरी) आदि द्रव्यों का सम्बन्ध किया जाता है तब एक अवस्था ऐसी होती है कि जिसमें पंक का कुछ भाग नीचे बैठ जाता है और कुछ भाग जल में ही मिला रहता है। उसी तरह जीव के साथ बंधे हुए चार घनघाती कर्मों की एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें कुछ कर्मांशों का क्षय
और कुछ कर्मांशों का उपशम होता है। इस अवस्था को क्षयोपशम कहते हैं। कर्मों के क्षयोपशम से जीव में जो भाव निष्पन्न होते हैं, उन्हें क्षायोपशमिक भाव कहते हैं।
आठ कर्मों में मोहनीयकर्म का स्वभाव विकार पैदा करने का है। मिथ्यात्व दर्शन-मोहनीयकर्म के और अविरति (असंयम) चारित्र-मोहनीयकर्म के उदय से निष्पन्न भाव हैं । जब दर्शन और चारित्र-मोहनीयकर्म का क्षयोपशम होता है तब क्रमशः सम्यक्त्व और चारित्र उत्पन्न होते हैं चारित्र-मोहनीयकर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न चारित्र को क्षयोपशमिक चारित्र कहते हैं। सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धिक और
१. भगवती २५.६ २. तत्त्वा० २.१ सर्वार्थसिद्धि
उभयात्मको मिश्रः । यथा तस्मिन्नेवाम्भसि कतकादिद्रव्यसम्बन्धात्पङ्कस्य क्षीणाक्षीणवृत्तिः ३. झीणी चर्चा ढा० १६.४ :
तीन माठी लेश्या ने च्यार कषाय ने रे, तीन वेद मिथ्याती नें अव्रत रे। ए बारै बोलां में सावज जाणज्यो रे, मोह उदा स्यूं याँ रो प्रवत रे।।