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नव पदार्थ
अठारह पाप का विरमण सर्वविरति संवर है अतः संवर अरूपी है, वह अरूपी और भाव-जीव सिद्ध होता है।
६. उत्तराध्ययन में चारित्र का गुण-कर्मों को रोकना बताया गया है। कर्मों को रोकनेवाला संवर जीव ही हो सकता है अजीव कर्म कैसे रोकेगा?
७. चारित्रावरणीय कर्म का अर्थ है वह कर्म जो चारित्र का आवरण हो। यह जीव के गुण का आवरण है, अजीव का नहीं।
८. एक बार गौतम ने पूछा-"भगवन् ! आराधना कितने प्रकार की कही गई है ?" भगवान ने उत्तर दिया-"गौतम ! आराधना तीन प्रकार की कही गई हैं(१) ज्ञानाराधना, (२) दर्शनाराधना, (३) चारित्राराधना।"
चारित्राराधना का अर्थ है-चारित्र-गुण की आराधना । चारित्र जीव का गुण-भाव है। उसकी आराधना चारित्राराधना है। अजीव की आराधना क्या होगी? चारित्र संवर है। इस तरह संवर भी जीव-गुण, भाव-जीव सिद्ध होता है।"
१. उत्त० ८. ३५
चरित्तेण निगिण्हाइ २. भगवती ८.१०