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संवर पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी १५
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जीव गुणप्रमाण में चारित्र गुण का भी उल्लेख है। चारित्र संवर है। अतः वह जीव-प्रमाण सिद्ध होता है।
चारित्र गुणप्रमाण का भेद बताते हुए पाँचों चारित्रों का नामोल्लेख करने के बाद लिखा है-'से तं चरित्तगुणप्पमाणे, से तं जीवगुणप्पमाणे।' इससे पाँचों ही चारित्र-विरति संवर भाव-जीव ठहरते हैं।
३. ठाणाङ्ग में दसविध जीव-परिणाम में ज्ञान और दर्शन को जीव-परिणाम कहा है। वैसे ही चारित्र को भी जीव-परिणाम कहा है'। जिस तरह जीव-परिणाम ज्ञान और दर्शनभाव-जीव हैं उसी तरह जीव-परिणाम चारित्र भी भाव-जीव है।
४. पार्श्वनाथ के वंश में हुए कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार ने महावीर के स्थविरों के पास आकर कुछ वार्तालाप के बाद प्रश्न किया-“हे आर्यो ! सामायिक क्या है, सामायिक का अर्थ क्या है; प्रत्याख्यान क्या है, प्रत्याख्यान का अर्थ क्या है; संयम क्या है, संयम का अर्थ क्या है; संवर क्या है, संवर का अर्थ क्या है; विवेक क्या है, विवेक का अर्थ क्या है; और व्युत्सर्ग क्या है, व्युत्सर्ग का अर्थ क्या है ?"
स्थविरों ने उत्तर दिया-“हे कालास्यवेषिपुत्र ! हमारी आत्मा ही सामायिक हमारी आत्मा ही सामायिक का अर्थ है; हमारी आत्मा ही प्रत्यख्यान और हमारी आत्मा ही प्रत्याख्यान का अर्थ है; हमारी आत्मा ही संयम और हमारी आत्मा ही संयम का अर्थ है; हमारी आत्मा ही संवर और हमारी आत्मा ही संवर का अर्थ है; हमारी आत्मा ही विवेक और हमारी आत्मा ही विवेक का अर्थ है तथा हमारी आत्मा ही व्युत्सर्ग और हमारी आत्मा ही व्युत्सर्ग का अर्थ है।"
यहाँ सामायिक, प्रत्याख्यान, संयम, विवेक और कायोत्सर्ग को आत्मा कहा है वहाँ संवर को भी आत्मा कहा है। अतः संवर भाव-जीव है।
५. गौतम ने पूछा-“भगवन् ! प्रणातिपात विरमण यावत् परिग्रह विरमण, क्रोधविवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक-इनके कितने वर्ण यावत् स्पर्श कहे गए हैं ?"
भगवान ने उत्तर दिया-“गौतम ! प्राणातिपात विरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विवेक अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्श है।"
१. पाठ के लिए देखिए-पृ० ४०५ टि० २४ २. भगवती १.६ ३. भगवती १२.५