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नव पदार्थ
२०. दरसणावर्णी री नव प्रकत मझे, एक प्रकत षयउपसम सदीव हो।
तिण सूं अचषू दरसण ने फरस इंदरी सदा रहें, षयउपसम भाव जीव हो।।
२१. चषू दरसणावर्णी षयउपसम हूआं, चषू दरसण ने चषू इंद्री होय हो।
करम अलगा हूआं उजलो हूओ, जब देखवा लागो सोय हो।।
२२. अचषु दरसणावर्णी वशेष थी, षयउपसम हवें तिण वार हो। ___ चषू टाले सेष इंद्री, षयउपसम हुवें इंद्री च्यार हो।।
२३. अवधि दरसणावर्णी षयउपसम हुआं, उपजें अवधि दरसण वशेष हो।
जब उतकष्टो देखे जीव एतलो, सर्व रूपी पुदगल ले देख हो।।
२४. पांच इंद्री ने तीनइ दरसण, ते षयउपसम उपीयोग मणागार हो।
ते वानगी केवल दरसण माहिली, तिणमें संका म राखो लिगार हो।।
२५. मोह करम षयउपसम हूआं, नीपजें आठ बोल अमांम हो।
च्यार चारित ने देस विरत नीपजें, तीन दिष्टी उजल होय तांम हो।।
२६. चारित मोह री पचीस प्रकत मझे, केइ सदा षयउपसम रहें ताय हो।
तिण सूं अंस मात उजलो रहें, जब भला वरते , अधवसाय हो।।
२७. कदे षयउपसम इधकी हूवें, जब इधका गुण हुवें तिण मांय हो।
षिमा दया संतोषादिक गुण वधे, भली लेस्यादि वरतें जब आय हो।।