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निर्जरा पदार्थ ( ढाल : १)
६०.
६१.
६३.
६२. अंतराय कर्म के सम्पूर्ण दूर होने से क्षायिक वीर्य - शक्ति उत्पन्न होती है तथा पांचों ही क्षायिक लब्धियाँ प्रकट होती हैं। किसी भी बात की अंतराय नहीं रहती " ।
६४.
६५.
मोहनीय कर्म के सम्पूर्ण क्षय होने से उसके अंशमात्र भी न रहने से क्षायिक सम्यक्त्व प्रकट होता है और यथाख्यात क्षायिक चारित्र प्रकट होता है ।
६६.
दर्शनमोहनीय कर्म के सर्वथा क्षय से प्रधान क्षायिक सम्यक्त्व प्रकट होता है । चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय होने से क्षायिक चारित्र उत्पन्न होता है ।
उपशम, क्षायिक और क्षयोपशम- ये तीनों निर्मल भाव हैं। ये जीव के निर्दोष स्वगुण हैं । इनसे जीव देशरूप निर्मल होता है, वह निर्जरा है और सर्वरूप निर्मल होता है, वह मोक्ष है ।
श्रावक की देशविरति होती है और साधु की सर्वविरति । जिस तरह श्रावक की देशविरति साधु की सर्वविरति में समा जाती है, उसी तरह निर्जरा मोक्ष में समा जाती
है ।
जीव का एक देश उज्ज्वल होना निर्जरा है और सर्व देश उज्ज्वल होमा मोक्ष । इसलिए निर्जरा और मोक्ष दोनों भावजीव हैं। दोनों ही जीव के निर्दोष उज्ज्वल गुण हैं |
निर्जरा को समझाने के लिए यह जोड़ नाथद्वारा शहर में सं० १८५६ की फाल्गुन शुक्ला दशमी गुरुवार को की गई है।
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तीन निर्मल भाव
निर्जरा और मोक्ष (ग्रा० ६४-६५)
रचना - स्थान और
काल