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नव पदार्थ
३. सम्यक्त्वादि बीस संवर एवं उनकी परिभाषाएँ (गा० १, २, ५, १०, १३) :
नीचे सम्यक्त्व आदि बीस आस्रवों की परिभाषाएँ दी जा रही हैं। इनका आधार प्रस्तुत ढाल तो है ही साथ ही स्वामीजी की अन्य कृति 'टीकम डोसी की चर्चा' भी है। बीस संवरों की परिभाषाएँ क्रमशः इस प्रकार हैं : (१) सम्यक्त्व संवर (गा० १) :
यह मिथ्यात्व आस्रव का प्रतिपक्षी है। स्वामीजी ने इसकी परिभाषा देते हुए उसके दो अङ्ग बतलाए हैं : (क) नौ पदार्थों में यथातथ्य श्रद्धान और (ख) विपरीत श्रद्धा का त्याग।
(२) विरति संवर (गा० २) :
यह अविरति आस्रव का प्रतिपक्षी है। सावध कार्यों का तीन करण और तीन योग से जीवनपर्यन्त के लिए प्रत्याख्यान करना सर्व विरति संवर है। अंश-त्याग देश विरति संवर है। ' (३) अप्रमाद संवर :
यह तीसरे प्रमाद आस्रव का प्रतिपक्षी है। प्रमाद का सेवन न करना अप्रमाद संवर है। प्रमाद का अर्थ अनुत्साह है। आत्म-स्थित अनुत्साह का क्षय जो जाना अप्रमाद संवर
(४) अकषाय संवर :
यह कषाय आस्रव का प्रतिपक्षी है। कषाय न करना अकषाय संवर है। कषाय का अर्थ है-आत्म-प्रदेशों का क्रोध-मान-माया-लोभ से मलीन रहना । कषाय का क्षय हो जाना अकषाय संवर है।
(५) अयोग संवर (गा० ५, १२) :
यह योग आस्रव का प्रतिपक्षी है। योग दो तरह के होते हैं-सावद्य और निरवद्य। दोनों का सर्वतः निरोध योग संवर है। सावद्य योगों का आंशिक या सार्वत्रिक त्याग अयोग संवर नहीं। यह विरति संवर है। सावद्य-निरवद्य सर्व प्रवृत्तियों का निरोध अयोग संवर है। १. टीकम डोसी की चर्चा :
प्रमाद न सेवे तेहिज अप्रमाद संवर। २. टीकम डोसी की चर्चा :
कषाय न करे तेहिज अकषाय संवर।