________________
टिप्पणियाँ
१. संवर छठा पदार्थ है (दो १-३) : इन दोहों में स्वामीजी ने निम्न बातें कही हैं :
(१) संवर छठा पदार्थ है। (२) संवर आस्रव-द्वार का अवरोध पदार्थ है। (३) संवर का अर्थ है-आत्म-प्रदेशों का स्थिरभूत होना। (४) संवर आत्म-निग्रह से होता है।
(५) मोक्ष-मार्ग की आराधना में संवर उत्तम गुण-रत्न है। (१) संवर छठा पदार्थ है :
स्वामीजी ने नव पदार्थों में संवर का जो छठा स्थान बतलाया है वह आगम-सम्मत है'। पदार्थों की संख्या नौ मानने वाले दिगम्बर-ग्रन्थों में भी इसका स्थान छठा ही है। तत्त्वार्थ सूत्र में सात पदार्थों के उल्लेख में इसका स्थान पाँचवाँ है । पुण्य-पाप पदार्थों की पूर्व में गिनती करने से इसका स्थान सातवाँ होता है। हेमचन्द्रसूरि ने सात पदार्थों की गणना में इसे चौथे स्थान पर रखा है। इससे पुण्य और पाप को पूर्व में गिनने से भी इसका छठा स्थान सुरक्षित रहता है।
भगवान महावीर ने कहा है-“ऐसी संज्ञा मत करो कि आस्रव और संवर नहीं हैं. पर ऐसी संज्ञा करो कि आस्रव और संवर हैं।।" ठाणाङ्ग तथा उत्तराध्ययन में इसे सद्भाव
१. (क) उत्त २८.१४ (पृ० २५ पर उद्धृत); २८.१७
(ख) ठाणाङ्ग ६.३.६६५ (पृ० २२ पा० टि० १ में उद्धृत) २. पञ्चास्तिकाय २.१०८ (पृ. १५० पा० टि० ५ में उद्धृत) ३. देखिए पृ० १५१ पा० टि० १ ४. देखिए पृ०. १५१ पा० टि० ३ ५. सुयगड २.५-१७ :
नत्थि आसवे संवरे वा नेवं सन्नं निवेसए। अस्थि आसवे संवरे वा एवं सन्नं निवेसए।।