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संवर पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी २
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(१४) उत्तम संयम : योग-निग्रह को संयम कहते हैं। श्री अकलङ्कदेव के अनुसार संयम में प्राणी-संयम और इन्द्रिय-संयम ही आते हैं मन, वचन और काय का निग्रह गुप्तियों में आ जाता है। उमास्वाति ने संयम के सतरह भेद दिये हैं।
(१५) उत्तम तप : कर्मक्षय के लिए उपवासादि बाह्य तप और स्वाध्याय, ध्यान आदि अन्तर तपों को करना तप धर्म है। इच्छा-निरोध को भी तप कहा है-"इच्छानिरोध-स्तपः।
(१६) उत्तम त्याग : उमास्वाति के अनुसार बाह्य और आभ्यन्तर उपाधि तथा शरीर, अन्नपानादि के आश्रय से होनेवाले भावदोष का परित्याग त्याग धर्म है । आचार्य पूज्यपाद के अनुसार संयति को योग्य ज्ञानादि का दान देना त्याग है। श्री अकलङ्कदेव के अनुसार परिग्रह-निवृत्ति को भी त्याग कहते हैं। कई जगह निर्ममत्व को त्याग कहा गया है-'निर्ममत्वं त्यागः।
(१७) उत्तम आकिञ्चिन्य : उमास्वाति के अनुसार शरीर और धर्मोपकरणों में ममत्व न रखना उत्तम आकिञ्चन्य धर्म है । आ० पूज्यपाद के अनुसार यह मेरा है। इस प्रकार के अभिप्राय का त्याग करना आकिञ्चन्य है।
(१८) उत्तम ब्रह्मचर्य : उमास्वाति के अनुसार इसके दो अर्थ हैं : (१) व्रतों के परिपालन ज्ञान की अभिवृद्धि एवं कषाय-परिपाक आदि हेतुओं से गुरुकुल में वास करना और (२) भावनापूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करना |
१. तत्त्वा० ६.६ भाष्य २. वही : राजवार्तिक ११-१४ ३. वही : ६.६ भाष्य ४. (क) तत्त्वा० ६.६ भाष्य
(ख) वही : सर्वार्थसिद्धि ५. तत्त्वा० ६.६ भाष्य ६. वही० : सर्वार्थासिद्धि ७. वही : राजवार्तिक १८ ८. तत्त्वा० ६.६ भाष्य ६. वही : सर्वार्थसिद्धि १०. वही : भाष्य