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संवर पदार्थ (टाल : १) : टिप्पणी २
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संवर के ५७ भेदों का वर्णन छह गुच्छों में किया जाता है। इन गुच्छों के क्रम भिन्न-भिन्न मिलते हैं। तत्त्वार्थसूत्र में गुच्छों का अनुक्रम-गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र-इस रूप में है। दूसरे निरूपण में परीषह-जय, समिति, गुप्ति, भावना, चारित्र, धर्म-यह क्रम है। तीसरे प्ररूपण में चारित्र, परीषह-जय, धर्म, भावना समिति, गुप्ति,-यह क्रम है। इसी प्रकार अन्य क्रम भी उपलब्ध हैं । यहाँ तत्त्वार्थ-सूत्र के गुच्छ-में से ही ५७ संवरों का विवेचन किया जाता है।
वाचक उमास्वाति तत्त्वार्थसूत्र के स्वोपज्ञ भाष्य में संवर पदार्थ की परिभाषा में कहते हैं : "आस्रव के ४२ भेद बतलाये जा चुके हैं। उनके निरोध को संवर कहते हैं। इस संवर की सिद्धि गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषह-जय और चारित्र से होती है।" गुप्ति आदि के ही कुल मिलाकर ५७ भेद हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : १. तीन गुप्ति।
जिससे संसार के कारणों से आत्मा का गोपन-बचाव हो उसे गुप्ति कहते हैं । मन, वचन और काय-तीनों का सम्यक् निग्रह गुप्ति है । भाष्य के अनुसार 'सम्यक' शब्द का
१. तत्त्वा ६.२.
स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहचारित्रैः २. पृ० ५१० पाद-टिप्पणी ३ ३. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : जयशेखसूरि निर्मित नवतत्त्वप्रकरणम् १६-२३ ४. देखिए-नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह में संगृहीत नवतत्त्वप्रकरण ५. (क) तत्त्वा ६.१ :
आस्रवनिरोधः संवरः (ख) वही : भाष्य :
यथोक्तस्य काययोगादेर्द्विचत्वारिंशद्धिधस्य निरोधः संवरः (ग) स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः (घ) वही : भाष्य
स एष संवरः एभिर्गुप्त्यादिभिरभ्युपायैर्भवति ६. तत्त्वा० ६.२ सर्वार्थसिद्धि :
यतः संसारकारणादात्मनो गोपनं भवति सा गुप्तिः ७. तत्त्वा ६४
सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः