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नव पदार्थ
२ त्याग कीया सर्व सावध जोग रा, जावजीव तणा पचखांण हो।
आगार नहीं त्यांरे पाप करण तणो, ते सर्व विरत संवर जाण हो।।
३. पाप उदे सूं जीव परमादी थयो, तिण पाप सूं परमादी थाय हो।
ते पाप खय हूआं के उपसम हूआं, अपरमाद संवर हुवें ताय हो।।
४. कषाय करम उदे छै जीव रे, तिणसूं कषाय आश्रव छ तांम हो।
ते कषाय करम अलगा हुवां जीव रे, जब अकषाय संवर हुवें आम हो।।
५. थोड़ा २ सा जोगां ने रूंधीयां, अजोग संवर नहीं थाय हो।
मन वचन काया रा जोग रूंधे सरवथा, ते अजोग संवर हुवें ताय हो।।
६. सावध माठा जोग रूंध्यां सरवथा, जब तो सर्व विरत संवर होय हो। पिण निरवद जोग बाकी रह्या तेहनें, तिण सूं अजोग संवर नहीं कोय हो।।
७. परमाद आश्रव नें कषाय जोग आश्रव, ए तो न मिटे कीयां पचखांण हो।
ए तो सहजाइ मिटे छे करम अलगा हुवां, तिणरी अंतरंग करजो पिछांण हो।।
८. सुभ ध्यान में लेस्या सूं करम कटियां थकां, जब अपरमाद संवर थाय हो।
इमहिज करतां अकषाय संवर हुवें, इम अजोग संवर होय जाय हो।।
६. समकत संवर ने सर्व विरत संवर, ए तो हुवें छे कीयां पचखांण हो।
अपरमाद अकषाय अजोग संवर हुवें, ते तो करम खय हूआं जांण हो।