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नव पदार्थ
१८. सामायक आदि पांचूं चारित भणी, सर्व वरत संवर जांण हो।
पुलाग आदि दे छहूंइ नियंठा, ए पिण लीज्यो संवर पिछांण हो।।
१६. चारितावर्णी षयउपसम हुआं, जब जीव ने आवे वेंराग हो।
जब कांम नें भोग थकी विरक्त हवें, जब सर्व सावध दे त्याग हो।।
२०. सर्व सावद्य जोग नें त्यागे सरवथा, ते सर्व वरत संवर जांण हो।
जब इविरत रा पाप न लागे सरवथा, ते तो चारित छे गुण खांण हो।।
२१. धूर सूं तो सामायक चारित आदस्यो, तिणरे मोह करम उदे रह्यों ताय हो।
ते करम उदे सूं किरतब नीपजें, तिण सूं पाप लागें , आय हो।।
२२. भला ध्यान में भली लेस्या थकी, मोह करम उदे थी घट जाय हो।
जब उदे तणा किरतब पिण हलका पढ़ें, जब हलकाइ पाप लगाय हो।।
२३. मोह करम जाबक उपसम हुवें, जब उपसम चारित हुवें ताय हो।
जब जीव हुवें सीतलभूत निरमलो, तिणरे पाप न लागें आय हो।।
२४. मोहणीय करम तें जाबक खय हुवां, खायक चारित हुवें जथाख्यात हो।
जब सीतलभूत हूओ जीव निरमलो, तिणरे पाप न लागें अंसमात हो।।
२५. सामायक चारित लीये , उदीर ने, सावध जोग रा करें पचखांण हो।
उपसम चारित आवें मोह उपसम्यां, ते चारित इग्यारमें गुणठांण हो।।