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नव पदार्थ
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४१. सुषम संपराय चारितीया रे सेष उदे रह्या, मोह करम रा अनंत परदेस हो।
ते अनंत परदेस खस्यां निरजरा हुइ, बाकी उदे नहीं रह्यों लवलेस हो।।
४२. जब जथाख्यात चारित परगट हुवो, तिण चारित रा पजवा अनंत हो।
सुषम संपराय रा उतकष्टा पजवा थकी, अनंत गुणां कह्यां भगवंत हो।।
४३. जथाख्यात चारित उजल हुओ सरवथा, तिण चारित रो थानक एक हो।
अनंता पजवा तिण थानक तणा, ते थानक छे उतकष्टो वशेख हो।।
. ४४. मोह करम परदेस अनंता उदे हुवें, ते तो पुदगल री पर्याय हो।
अनंता अलगा हूआं अनंत गुण परगटे, ते निज गुण जीव रा छे ताय हो।।
४५. ते निज गुण जीव रा ते तो भाव जीव छ, निज गुण , वंदणीक हो।
ते तो करम खय हूआं सूं नीपना, भाव जीव कह्या त्यांने ठीक हो।।
४६. सावध जोगां रा त्याग करें ने रूंधीया, तिण सूं विरत संवर हुवो जांण हो।
निरवद जोंग रूंध्यां संवर हुवें, तिणरी करजो पिछांण हो।।
४७. निरवद जोग मन वचन काया तणा, ते घटीयां संवर थाय हो।
सरवथा घटीयां अजाग संवर हुवें, तिणरी विध सुणो चित्त ल्याय हो।।
४८. साधु तो उपवास बेलादिक तप करें, करम काटण रे काम हो। __जब संवर सहचर साधु रे नीपजें, निरवद जोग रूंध्यां सूं तांम हो।।